2122-2122-2122
झूठ का सन्सार करना चाहता है
सत्य पर नित वार करना चाहता है।१।
*
जो न रखता वास्ता अपनो से कोई
अन्य का आभार करना चाहता है।२।
*
देह को पतवार करके आदमी अब
हर नदी को पार करना चाहता है।३।
*
भाव गुणना आज भी आया नहीं पर
शब्द का व्यापार करना चाहता है।४।
*
भीड़ से लगने लगा अब डर बहुत
डर को भी हथियार करना चाहता है।५।
*
तोड़ देता था कभी दिखते ही उसको
अब कलम दमदार करना चाहता है।६।
*
रक्त से भीगा है आगन आज तक भी
हर दिवस त्योहार करना चाहता है।७।
*
है परेशाँ रंजो गम से जो "मुसाफिर"
साँस को इतवार करना चाहता है।८।
*
(१९-३-२२)
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर'
Comment
क्या खूब कहा है आपने बधाईयां।।
आ. भाई गुमनाम जी सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद मंच पर आपकी उपस्थिति से हर्ष हुआ। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।
निरंतर उपस्थिति बनाये रखने और रचनाएँ प्रस्तुत करने का अनुरोध है। आपका सानिध्य मिलता रहे यही कामना है।
आ. भाई समर जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह व उत्साह वर्धन के लिए आभार। त्रुटियों की ओर ध्यान दिलाने के लिए भी आभार।
- "भीड़ से लगने लगा अब डर बहुत यूँ "
जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करेंI
'भीड़ से लगने लगा अब डर बहुत'
इस मिसरे की बह्र देखेंI I
'रक्त से भीगा है आगन आज तक भी'---'आगन' --"आँगन"
आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।
आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, सुंदर प्रस्तुति।
"देह को पतवार करके आदमी अब
हर नदी को पार करना चाहता है।३। इस शे'र के लिए विशेष बधाई स्वीकार करें।
आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद।
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