तो रो दिया .......
मौन की गहन कंदराओं में
मैनें मेरी मैं को
पश्चाताप की धूप में
विक्षिप्त तड़पते देखा
तो रो दिया ।
खामोशी के दरिया पर
मैंने मेरी मैं को
तन्हा समय की नाव पर
अपराध बोध से ग्रसित
तिमिर में लीन तीर की कामना में लिप्त
व्यथित देखा
तो रो दिया
क्रोध के अग्नि कुण्ड में
स्वार्थघृत की आहूति से परिणामों को
जब धू- धू कर जलते देखा
तो रो दिया
सच , क्रोध की सुनामी के बाद जब
तबाही का मंजर देखा
तो साथ मेरे
मेरा मैं भी रो दिया ।
सुशील सरना / 30-9-21
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत सुन्दर ढंग से एहसासों को शब्दों में पिरोया है | बधाई स्वीकारें आदरणीय सुशिल सरना जी|
आदरणीय सुशील सरना जी सादर अभिवादन एक बहुत ही उत्कृष्ट रचना पढ़कर मुझे खुशी मिली सादर शुभकामनाएं
आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। हर बार की तरह एक बेहतरीन सृजन पढ़ने को मिला। कोटि कोटि बधाई आपको
आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है । हार्दिक बधाई।
जनाब सुशील सरना जी आदाब, हमेशा की तरह एक और शानदार कृति के लिए आपको हार्दिक बधाई।
जनाब सुशील सरना जी आदाब, अच्छी रचना हुई है. इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें I
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