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मन में अक्षय स्‍नेह सभी के

समरस भाव प्रवणता है

फिर भी जाने क्‍योंकर सबने

बांटी कलुष,कृपणता है

छूत-पाक का लावा-लश्‍कर

हुलस चूम कब यम आया

कसक धकेले, सदा अकेले

बूंद-बूंद कब ग़म आया

फंसा जुए में गला सभी का

पगतल अतल विकलता है

जाने फिर भी हर लिलार पर

किसने मली खरलता है

तपिश उड़ेले स्‍वाद कषैले

लिए जागते दीप कहां

रूचिर अधर पर लुटे प्राण को

मिला दूसरा सीप कहां

कहां बनी दारूण यह अरणी

मोद मधुर जो दलता है

हर प्रबोध से नयन चुराए

वक्र ताल ही चलता है

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 530

Comment

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Comment by upasna siag on February 4, 2013 at 3:14pm

बहुत सुन्दर रचना ......

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 3, 2013 at 7:01pm

मन में अक्षय स्‍नेह सभी के

समरस भाव प्रवणता है

फिर भी जाने क्‍योंकर सबने

बांटी कलुष,कृपणता है.............वाह जहां कुछ नहीं लगना वहां भी हम कृपण ही रहे.

सुन्दर रचना.पंक्ति पंक्ति शब्द संयोजन मन मुग्ध कर रहा है और भावों के तो क्या कहने. हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय राजेश कुमार झा जी सादर.

Comment by vijay nikore on February 3, 2013 at 8:30am

बहुत सुन्दर, वाह!

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 3, 2013 at 6:08am

भाव समृद्ध रचना के लिए आपको अतिशय बधाइयाँ, आदरणीय राजेश जी. शिल्प के क्षेत्र में अवश्य ही सार्थक प्रयास करें.

आपकी रचनाओं की कहन और उसके निहितार्थ के विभिन्न आयामों को आपकी शाब्दिकता के साँचे में देख-बूझ कर हम कई-कई बार संतुष्ट हो चुके हैं.

विश्वास है आदरणीय, मेरे कहे को आप उदारता और संपूर्णता में स्वीकार कर रहे हैं.

सादर

Comment by MAHIMA SHREE on February 2, 2013 at 11:12pm

वाह!! बहुत ही सुंदर और मननीय  प्रस्तुति . हमेशा की तरह बार बार पढने पर भी दुबारा पढने का लोभ नहीं छूटता .. बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 2, 2013 at 9:26pm

छूत-पाक का लावा-लश्‍कर

हुलस चूम कब यम आया

कसक धकेले, सदा अकेले

बूंद-बूंद कब ग़म आया-----राजेश झा जी पुनः एक सुन्दर प्रविष्टि शानदार शब्द भाव  लय प्रवाह बहुत बहुत सुन्दर 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 2, 2013 at 7:12pm

क्या बात है बहुत सुन्दर आदरणीय राजेश जी ......बधाई हो आपको

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 2, 2013 at 4:17pm

हर प्रबोध से नयन चुराए

वक्र ताल ही चलता है-------बहुत सुन्दर बधाई राजेश कुमार झा जी 

Comment by Alpana Verma on February 1, 2013 at 4:20pm

'हर प्रबोध से नयन चुराए...

वाह! अति सुन्दर प्रस्तुति!

Comment by भावना तिवारी on February 1, 2013 at 3:58pm

कसक धकेले, सदा अकेले

बूंद-बूंद कब ग़म आया

तपिश उड़ेले स्‍वाद कषैले............BAHUT SUNDAR ..KAVYANUBHOOTI ...BADHAI ..WAAH ..!!

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