For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें (2)

 चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें (2) की द्वितीय कड़ी में सब अतिथि  blogers का स्वागत है. आप के पर्संसात्मक comments का धन्यवाद यह एक लम्बी काव्या कथा है कृपया बने रहें. कोशिश करूंगा आप को निराश न करूं. यदि रचना बोर करने लगे तो कह देना. मैं दुसरे टॉपिक्स में शिफ्ट हो जाऊंगा.

Dr. Swaran J Omcawr

चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें (2)

ज्ञानी


दिग्भ्रमित! हतप्रभ!!


...जन्मजात गूंगे सा!!!


एक एक ब्द जोड़ कर कहता है.

‘आह! गंगे क्या कह दिया!


क्या कह रही हो..’

गंगा जी की बीमार वाणि-

‘पास आओ तो कुछ कहूं.


बूढ़ी हो गई हूं.


इतना साफ़ स्पष्ट नहीं बोल सकती


जैसे तुम स्टेजों पर घंटों प्रवचन करते हो.


ब्द कम हैं मेरे वो भी न सुन पाये तो...


अपना हाथ दो


और अपना कान भी...’

ज्ञानी किंकर्तव्यविमूड़,


कुछ कहता नहीं


यंत्रवत ...बैठ जाता है गंगा जी के पास


ठंडे जल की धारा जो मानव मल से धुंधली हो चुकी है


उसकी देह और आत्मा दोनो को भिगो रही है!

श्री गंगा उवाच-

‘ऋषि मुनि लोगों ने ..


कितना ज्ञान दिया


वेदों की पुराणों की रचना की


अपने ज्ञान से समृद्ध किया मानव मन


पूरा चैगिरदा वातावरण


पर क्या वे मानव मन को बदल सके?

वे वेद  पुराण  मिल कर 


मानव मन तो वैसा ही बना रहा- आज भी 


कपटी! लोभी! कामुक !


ज्ञान भी वहीं मन के भीतर कपट भी वहीं


समझ में नहीं आता कपट और ज्ञान एक साथ कैसे रह लेते हैं मानव मन में!


तब उन प्रकृति के पुजारी,


केवल मूलभूत तत्वों को देवत्व देने वाले,


उन महा-मुनियों महा-ऋषियों ने जाना-


कि ज्ञान से माया का नाश नहीं होता!


बल्कि ज्ञान से माया आष्चर्यजनक ढंग से रुपांत्रित हो जाती है!


और सूक्ष्म से सूक्ष्मतर


प्रथ्म ज्ञान ने माया को समझा


फिर उसी ज्ञान ने माया को सात पर्दों में छुपा लिया


टोह लेने वाला सहस्रों प्रयत्न कर ले


जान न पाये कि वह सरल से दीखने वाले ज्ञानि के भीतर


कितना बडा मायावी मन है


ज्ञान ने जितनी सूक्ष्म व्याख्या  माया की की,


उतना बड़ा माया का पासार भीतर बाहर जमा लिया!


वे सभी ज्ञान गृह इस दे में ही तो हैं


यहां अराद्दय देव स्वर्ण सिंहासनों पर विराजमान होते हैं


ज्ञान के परम तीरथ स्थल हैं वे


यहां ज्ञान माया के जाल से मुक्ति के लिए छटपटा रहा है


तो ऋषि मुनि लोगों ने ज्ञान से बाहर निकलने की युक्ति बताई मानव को


वेदांत की उपनिषदों की रचना की


ज्ञान को केवल बुद्धि की समझ माना


और अनुभूति को उच्चतम.


बताया कि ब्द तो मायाजाल है


प्राकृति के भीतर के सत्य को जानने के लिये


उस के आवर्ण को


ब्दों के वाण से नहीं भेदा जा सकता


शब्दों के सौंदर्य से,


वाक्यचात्रुता से उसे कुछ लेना देना नहीं


सोच से विचार से


विद् से बनती है विद्या


या विद्या के संग्रह हैं वेद

वे  पोथी हैं मात्र 
शब्द सँग्रह 
ज्ञान तो भीतर है कहीं 
शब्दों के पार


इन से प्राकृति के खोल को तो समझा जा सकता है


लेकिन प्राकृति के भीतरी सत्य को नहीं


वह केवल आत्मा (self) की पकड़  में आता है.


वह महानतम सत्य केवल आत्मा की आत्मानुभुति ही तो है


वह आत्मा का यग्य ही तो है


बाह्य हवन यग्य सब मायाजाल


वहां दो आत्मायें भी जुड़ें तो भीड़ बनती है


प्रेम गली अति सांकरी भैया


ता में दो न समायें


तुम स्वयं और गोविंद के साथ गुरु को भी जमा किये हो


वहां केवल एक आत्मा! केवल एक पारब्रह्म!


केवल एक तार केवल एक रास्ता!


संवाद से बनता है पहले वाद फिर विवाद


ज्ञानी का, भक्त का, संवाद सिर्फ उस से होता है


जिसे वह जानना चाहता है-आत्मा, सैल्फ या पारब्रह्म.


वह अपना माध्यम स्वयं


स्वयं का गुरु, स्वयं का पुजारी


किसी अन्य माध्यम, गुरु का पुजारी का इस ज्ञान से कोइ रिष्ता नहीं

गंगा कहती रहीं- ज्ञानि सुनता रहा....

(शेष बाकी ....)

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 655

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on March 17, 2013 at 9:43pm

पुनः धन्यवाद सौरभ पाण्डेय जी

 रचनाओं को असहज करती टंकण त्रुटियों या भाषायी दोष से अवगत हो रहा हूँ आप इस के लिए सजग हैं जान कर बहुत अच्छा लगा अक्सर हम लोग भाषा की पूर्णता को महत्व नहीं देते 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 17, 2013 at 9:30pm

//मैं कोई बड़ा लेखक नहीं   मेडिकल प्रोफेशन से जुडा एक प्रधायापिक हूँ...//

आदरणीय स्वर्ण जी,  बड़ा लेखक या मुख्य धारा का लेखक आदि-आदि क्या संज्ञाएँ हैं, ये किनके लिए प्रयुक्त होती हैं,  मुझे कभी स्पष्ट नहीं हुआ. आदरणीय,  आपको विदित हो कि ओबीओ पर लिखने-पढ़ने वाले अक्सर सदस्य प्रोफ़शनल्स ही हैं जो अपने-अपने कार्यालयों से समय निकाल कर साहित्य-सेवा का सुख व आनन्द लेते हैं. यह व्यक्ति के रूप में सबकी संवेदनशीलता ही है कि हालिया छोटी-बड़ी घटनाएँ उन्हें यथोचित रूप से प्रभावित करती है. चलिये, कसेकम आप पाठन-पठन की दुनिया से किसी तरह से संबद्ध तो हैं. हम अधिकांश के जीवन में तो विद्यालय या महाविद्यालयों के परिसर छूटे एक लम्बा अरसा हो गया है. 

//प्रस्तुत कविता मेरी मौलिक रचना है .. . आप पूरे नेट पर सर्च डाल  कर चेक कर लें..//

जब लेखक ने स्वघोषित कर दिया कि उसकी रचना मौलिक व अप्रकाशित है तो फिर ऐसा नहीं होने पर यह उस लेखक की ही नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वह असत्य घोषणा न करे.

आपका इस मंच पर होना नयी रौशनी एवं ताज़ा हवा की तरह है.  यह अवश्य है कि आपका थोड़ा संयम और आपकी थोड़ी सजगता रचनाओं को असहज करती टंकण त्रुटियों या भाषायी दोष से मुक्त कर सकती हैं.

सहयोग बना रहे.

सादर

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on March 17, 2013 at 8:27pm

धन्यवाद सौरभ पाण्डेय जी 

आप की टिपणी  ने बड़ा सकून  दिया है 
मैं कोई बड़ा लेखक नहीं 
मेडिकल प्रोफेशन से जुडा एक प्रधायापिक हूँ 
किसी भी संवेदनशील नागरिक की तरह मैं भी पर्यावरण प्रति  conscious  हूँ 
हाँ अध्यातम या सत्य की खोज में सुभाविक रूचि है 
पर्यावरण अगर जिमेदारी है तो उसका रास्ता आत्मा से हो कर जाता है 
आत्मा का रास्ता लेकिन मंदिर या मस्जिद से हो कर कदापि नहीं जाता यह बात मैंने समझ ली है 
आत्मा का रास्ता सवँ  की खोज है 
स्वै हमारा गहरा निरिक्षण मांगता है 
प्रस्तुत कविता मेरी मौलिक रचना है 
आप पूरे नेट पर सर्च डाल  कर चेक कर लें 
हाँ मैंने इस पर power point  प्रस्तुति तैयार की है 
जो मैं अपने स्टूडेंट्स से share करता हूँ 
आप ने रचना को सराहा यह मेरे लिए इनाम है 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 16, 2013 at 7:54am

डॉक्टर स्वर्ण जी, आपकी संवेदनशीलता से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका हूँ. समाज के प्रति जिम्मेदारी का कैसे निर्वहन हो यह आपकी लेखिनी का हेतु है.  मन प्रसन्न हो गया है, आपके उद्येश्य को बूझ-जान कर.

लेकिन,  आदरणीय, संप्रेषण हेतु प्रयुक्त साधन भी कुछ अर्थ रखता है. आप अपनी कहने के फेर में इतने कैजुअल हों कि साहित्य ही हाशिये पर चला जाये, यह कोई शुभचिंतक पाठक नहीं चाहेगा. 

आप टंकण त्रुटियों की तरफ़ विशेष ध्यान रखें, आदरणीय..  दूसरे, भाव का अजस्र प्रवाह बहुत आवश्यक है लेकिन आपके शब्द और उनका अनुशासित संयोजन ही उनभावों को कविता बनाते हैं.. .

पूर्ण विश्वास है, आदरणीय, आपकी प्रखर संवेदनशीलता मेरे कहे के अन्वर्थ को आपके लिए स्पष्ट करेगी. सहयोग बराबर बना रहे. 

सादर

Comment by बृजेश नीरज on March 15, 2013 at 7:31pm

//प्रेम गली अति सांकरी भैया

ता में दो न समायें

तुम स्वयं और गोविंद के साथ गुरु को भी जमा किये हो//

आपने जो व्याख्या की है उसने वास्तविकता पर पड़ी नकाब उतार दी। बहुत सुन्दर!
आभार सहित आपके प्रयास को नमन!

 

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on March 15, 2013 at 7:29pm
धन्यवाद  Laxman Prasad Ladiwala जी 
आप की प्रसंसात्मक टिपणी का शुक्रिया 
Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on March 15, 2013 at 7:29pm
धन्यवाद Yogi Sarasvat जी 
आप की प्रसंसात्मक टिपणी का शुक्रिया 
Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on March 14, 2013 at 2:29pm

माननीय Bloggers 

प्रस्तुत कड़ी में और इस काव्य कथा में मैंने गंगा और ज्ञानी वार्तालाप के माद्यम से सामायक दौर में अद्यात्मिक व सामाजिक दृश्य उजागर करने का पर्यतन किया है।
वे सभी ज्ञान गृह इस दे में ही तो हैं यहां अराद्दय देव स्वर्ण सिंहासनों पर विराजमान होते हैं
यहां ज्ञान माया के जाल से मुक्ति के लिए छटपटा रहा है
यहाँ माया  से आविर्भाव हमारा बाहरी दिखावा ही तो है 
और कितने दुःख और शर्म की बात है कि सामायक दौर में अद्यात्मिक जगत ही ऐसे बाहरी दिखावे को  महत्व दे रहा है 
इस के इलावा मैं धरम व अद्यातम के सही अर्थ की खोज में भी हूँ 
आप लोगों की समालोचक टिपणयों  का धन्यवादी हूँ 
Comment by Yogi Saraswat on March 14, 2013 at 12:07pm

sundar

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 14, 2013 at 10:27am

Dr. Swaran J Omcawr जी शास्वत गंगा की खोज प्रभावपूर्ण आलेख बहुत पसंद आया, यह पवित्र गंगा में मल से अपवित्र 

करने का कार्य, ऋषियों मुनियों के ज्ञान, धार्मिक साहित्य, वेदों, और भारतीय मनिहियों के अथक प्रयासों के बावजूद अविरल 

हो रहा है | तो फिर अकेले प्रशासन या सरकार ही नहीं आम जनता भी दोषी है | और प्रभु ही जाने कब सद्बुद्धि आएगी | बधाई |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
Sunday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service