For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक निर्झर नदी सी बहो 

खिलखिलाती हुई कुछ कहो 

फासले अब नहीं दरमियां 

आंच है,उम्र है,गरमियां

अब तो सम्बन्ध हैं इस तरह 

जैसे हों झील में मछलियां 

थाम लेंगे  तुम्हे  कूल  ये 

पास जब और कोई न हो 

गम मिले तो हँसे  हम बहुत 

दर्द से कोई यारी नहीं 

पल रहे हैं नयन में सपन 

नींद में अब खुमारी नहीं 

चांदनी मुस्कुराती लगे 

प्यास अब तो न कोई कहो 

_______________प्रो. विश्वम्भर शुक्ल ,लखनऊ 

(मौलिक ,अप्रकाशित )

Views: 448

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 1, 2013 at 6:10pm

बहुत खूबसूरत नवगीत 

हर पंक्ति में थिरकन है..माधुर्य है..रवानी है..ज़िंदगी है 

प्रथम बंद पर तो मनमुग्ध है..बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए 

सादर.

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 24, 2013 at 10:16pm

वाह आदरणीय बहुत ही सुन्दर मनोहारी नवगीत रचा है आपने, मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by बृजेश नीरज on June 24, 2013 at 9:24pm

बहुत ही सुन्दर नवगीत रचा है आपने! आपको मेरी हार्दिक बधाई!

Comment by Savitri Rathore on June 24, 2013 at 7:40pm

एक निर्झर नदी सी बहो 

खिलखिलाती हुई कुछ कहो

आदरणीय विश्वम्भर जी,

सादर प्रणाम !

आपका नवगीत अत्यंत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी बन पड़ा है ........हार्दिक बधाई !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 24, 2013 at 3:58pm

आदरणीय विश्वम्भर शुक्ल जी, आपके इस नवगीत ने अंतर के कोमल तंतुओं को झंकृत किया है. शिल्प, भाव, शब्द, कथ्य हर कुछ इतना उच्च है कि मैं आपकी इस प्रस्तुति को बार-बार पढ़ रहा हूँ.  और मुग्ध हो रहा हूँ.

एक निर्झर नदी सी बहो .. इस एक पंक्ति ने देर तक रोके रखा, क्योंकि खिलखिलाते हुए कुछ कहने  का निवेदन लिये आती है यह पंक्ति.

फासले अब नहीं दरमियां
आंच है,उम्र है,गरमियां
अब तो सम्बन्ध हैं इस तरह
जैसे हों झील में मछलियां.. . .  ओह्होह ! एक-एक पंक्ति अथाह है. इन्हें यों ही कहा ही नहीं जा सकता.

आपके अपार अनुभवों के सापेक्ष आपकी प्रस्तुति सुगढ़ हुई है. और मेरे अंदर का पाठक संतुष्ट हुआ है.

सादर बधाई, आदरणीय

Comment by aman kumar on June 24, 2013 at 3:49pm

गम मिले तो हँसे  हम बहुत 

दर्द से कोई यारी नहीं 

पल रहे हैं नयन में सपन 

नींद में अब खुमारी नहीं 

आपके गीत मे जीवन आदर्श है जो एक बाकिफ उम्र पर प्राप्त हो ता है |

अच्छा सा

 गीत ! आभार !

Comment by वेदिका on June 24, 2013 at 3:05pm

सुंदर गीत …

एक निर्झर नदी सी बहो 

खिल खिलाती हुयी कुछ कहो 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
7 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service