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संघर्ष - डॉo विजय शंकर

कभी यूं भी हुआ ,
मैं हारा ,
कोई गम नहीं।
हौसला कितनों का टूटा ,
किसी ने गिना नहीं।
--------
लोग दंग थे ,
जो जीता ,
उसे भी ,
कुछ मिला नहीं ।
--------
मैं हार कर भी खुश था ,
कुछ गया नहीं।
वो जीत कर भी ,
रोया , हाय , कुछ ,
कुछ भी , मिला नहीं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on June 3, 2016 at 5:53am
आदरणीय श्री सुनील जी , रचना को मान देने के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by shree suneel on June 2, 2016 at 9:15pm
गहन भाव को समेटे इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई आदरणीय विजय शंकर सर जी. सादर
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 27, 2016 at 8:41am
आदरणीय सुश्री डॉo उषा साहनी जी रचना पर आपकी उपस्थिति एवं सराहना हेतु आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 27, 2016 at 8:41am
आदरणीय बशर भारतीय जी , रचना की सराहना के लिए ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Usha on May 27, 2016 at 8:23am

आदरणीय डॉ विजय सर , जीवन में किये जाने वाले संघर्ष और कुछ भी हो संतुष्ट रहने के भाव को  खूबसूरती से उकेरा है आपने। हार्दिक बधाई। 

Comment by बशर भारतीय on May 26, 2016 at 10:46pm
इशारों इशारों में गहरी बात कर दी आपने आ. डॉ विजय शंकर सर बधाई आपको

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