For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रेम पचीसी --भाग 3 (प्रीत-पगे दोहे)

प्रेम-पचीसी--भाग-3 (प्रीत-पगे दोहे)
दाँत दुखे तो पाड़ दूँ, आँख दुखे दूँ फोड़ ।
घायल मन की पीर का, पास पिया के तोड़ ।। ...1

झाल बदन में उठ रही, जबसे लागी लाग ।
सावन बरसे नैन से, बुझे न फिर भी आग ।। ...2

होना था सो हो गया, अब तो करो उपाय ।
बाहर-भीतर आग है, पीड़ा सही न जाय ।। ...3

रोग लगा सो लग गया, छोड़ो सोच-विचार ।
अंग-अंग काटो भले, ढूँढ़ों कुछ उपचार ।। ...4

ज्यों-ज्यों करती हूँ दवा, त्यों-त्यों बढ़ता रोग ।
बैद बनो तुम साँवरे, कब बैठेगा जोग ।। ...5

मेरे मन की आस तो, अनहोनी सी बात ।
चाह जगी है धूप की, माँझिल आधी रात ।। ...6

चहुँदिश अँधियारा घना, नज़र न आए राह ।
उल्फ़त एक सुरंग है, भटक रही है चाह ।। ...7

जोर जताऊँ क्यों सजन, लागूँ तुमरी कौन ।
मन में रखती चाह को, जड़कर ताला मौन । ।...8

दुविधा के किस जाल में, उलझ गया है जीव ।
पीव गँवाकर ज़िन्दगी, जान गँवाकर पीव ।। ...9

क्या तुमको अनुभव हुआ, मेरे मन का हेत ।
मौन तुम्हारा चुभ रहा, कुछ तो दो संकेत ।। ...10

तुम धनियों का ठाठ हो, मैं निर्धन की आह ।
मौज करो तुम रात-दिन, मेरा कठिन निबाह ।। ...11

तुम रेशम का थान हो, फटा हुआ मैं टाट ।
तुम देवों के तन चढ़ो, मुझे बिछाए भाट ।। ...12

साजन तुम पावन बड़े, मैं पतिता कुल नीच ।
तुम गंगा की धार हो, मैं सड़कों का कीच ।। ...13

साजन मैं हूँ कोयला, तुम हीरा अनमोल ।
तुमरी लागे बोलियाँ, मेरा कौड़ी तोल ।। ... 14

तुम मेरे मालिक सजन, मैं हूँ तुमरा माल ।
बीच बजरिया बेच दो, मेरा दाम उछाल ।।...15

तुम चंदन की पोटली, महको चारों ओर ।
मैं गलियों की धूल हूँ , होड़ करूँ क्या तोर ।। ...16

खुलना था सो खुल गया, मेरे मन का भेद ।
पाप न समझा प्रेम को, शर्म न कोई खेद ।।...16


पीव निपट मैं बावरी, तुम हो चतुर सुजान ।
मुझ पर सारा जग हँसे, तुमरा जग में मान ।। ...17

तुम फूलों की बेल हो, मैं काँटों का झाड़ ।
तुम हो घर की शोभना, मेरा बास उजाड़ ।। ...18

ताड़ सको तो ताड़ लो, मेरे मन का चोर ।
मुझको जग का डर नहीं, लाख मचाओ शोर ।। ...19

प्रेम न होता सौ दफ़ा, मीत न होते दोय ।
इक चंदा की चाँदनी, देख चकोरा रोय ।। ...20

कितनी भागमभाग थी, कितने सारे काम ।
प्रेम निकम्मा कर गया, रटता हूँ बस नाम ।। ...21

जग में हाँसी हो गई, मिला न मन का मीत ।
गलियों का किस्सा बनी, मेरी पागल प्रीत । । ...22

तुम महलों की रौशनी, मैं कुटिया का दीप ।
तुम हो मोती कीमती, मैं इक फूटा सीप ।। ...23

तुम पारस हो साँवरे, मैं लौहे का ढेर ।
झट मुझको कंचन करो, क्यों करते हो देर ।। ...24

साजन तुम गुणवान हो, मैं अवगुण का पोट ।
तुमरा हर गुण लाख का, मुझमें लाखों खोट ।। ...25
मौलिक एवम् अप्रकाशित ।
©खुरशीद खैराड़ी , जोधपुर 9413408422

Views: 772

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by khursheed khairadi on September 7, 2017 at 6:56am
आदरणीय सौरभ सर आपका आशीर्वाद एवम् मार्गदर्शन ही मेरे पथ का पाथेय है। ओ बी ओ मंच का प्रेम मेरी लेखनी का संबल है।
आदरणीय गजेन्द्र सर,लक्ष्मण सर,समर सर,आरिफ़ साहब् ,सुशील सर आप सभी का सादर आभार।
Comment by Gajendra shrotriya on September 6, 2017 at 1:07pm
आ० खुर्शीद खेराड़ी साहब सादर अभिवादन। प्रेमपचीसी की ये तीसरी किश्त भी पहली और दूसरी की तरह ही प्रेमरस से सिक्त है योग,वियोग,करूणा,समर्पण और अध्यात्म के विभिन्न रंग बिखेर दिए हैं आपने। काबिले-तारीफ काम है आपका। उम्मीद है प्रेमपचीसी की ये श्रंखला अनवरत बढ़ती रहेगी। मेरी शुभकामनाएँ स्वीकार करें।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 5, 2017 at 11:33pm
अनुपम दोहावली । हार्दिक बधाई ।
Comment by Samar kabeer on September 5, 2017 at 9:27pm
जनाब ख़ुर्शीद खैराड़ी साहिब आदाब,भाग 3 भी बहुत ख़ूब और लाजवाब दोहे,इस प्रस्तुति पर भी दिल से ढेरों बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sushil Sarna on September 5, 2017 at 6:15pm

वाह आदरणीय खुर्शीद साहिब वाह। . प्रेम पचीसी का हर दोहा प्रेम की दिलकश तस्वीर पेश करता है।  हर दोहा अनमोल है।  इस दिलकश प्रस्तुती के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें सर। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 5, 2017 at 3:30pm

अद्भुत ! अद्भुत !! .. हीरे की एक-एक कनी सवा लाख की.. !! 

इस भाव-निवेदन की एक लम्बी परम्परा रही है..  तुम तरुवर मैं पात रे.. की शैली में स्वयं के सर्वस्व को उड़ेल देने की ललक को सदियों मान मिलता रहा है. यही द्वैत के मूल में भी है. लेकिन अपनी हीनता का बखान भक्ति के अन्यतम स्वरूप से अन्यतम को पाने का ऐसा माध्यम नवधा की प्रक्रिया के कहीं आगे ले जाता है.

आपकी इस प्रस्तुति पर हृदय से बधाइयाँ दे रहा हूँ. .. हार्दिक शुभेच्छाएँ 

शुभ-शुभ

Comment by Mohammed Arif on September 5, 2017 at 11:14am
आदरणीय खुर्शीद खैराड़ी जी आदाब, प्रेम की घनीभूत व्यंजना प्रकट करने में दोहे अपने पिछले दोहों की तुलना में पिछड़ गए हैं । बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
5 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब सूरत मतल्ले के साथ , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक  बधाई स्वीकार…"
9 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल  के शेर पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया देख मन को सुकून मिला , आपको मेरे कुछ…"
13 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपसे मिले अनुमोदन हेतु आभार"
yesterday
Chetan Prakash commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"मुस्काए दोस्त हम सुकून आली संस्कार आज फिर दिखा गाली   वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल '…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service