For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मानवेतर कथा/लघुकथा (अतुकान्त कविता)

मानव से इतर
तीतर-बीतर
कौए-कबूतर
शेर-चूहे
सपना-परिकल्पना
कछुआ-खरग़ोश
होश-बेहोश
जड़-चेतन, मूर्त-अमूर्त
भूत प्रेत-एलिअन
जिनके
सजीव-निर्जीव पात्र
मानवीय आचरण में
सज्जन-दुर्जन
मानव-संवाद
तंज/कटाक्ष
यथार्थ सी कल्पना
प्रतीकात्मक
बिम्बात्मक
बोधात्मक
सार्थक सर्जना
व्यंजना-रंजना
कल्पना-लोक-भ्रमण
सार्थक
मानवेतर
कथा या हो लघुकथा सृजन!

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 666

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 31, 2018 at 12:13am

बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब सोमेश कुमार जी और बृजेश कुमार 'ब्रज'  जी।

लघुकथा लेखन की एक विधा है "मानवेतर" शैली! जिसमें मूर्त-अमूर्त या पशु--पक्षी/निर्जीव चीजों के मानवीकरण या बिम्बों में कोई लघुकथा‌ कही जाती है किसी तंज/कटाक्ष/शिक्षा/ बोध हेतु। सादर।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 31, 2018 at 12:07am

आदाब।

तीतर (पक्षी) बीतर---(मात्र तुकबंदी , यहां कबूतर लिख सकते थे)  तुकबंदी वाले किसी और पक्षी/पशु.. का नाम सुझाइये!

Comment by somesh kumar on March 30, 2018 at 10:51am

ब्लॉग स्पॉट में शीर्षक पढ़कर पहले तो उलझन हुई की आखिर यह कौन सी रचना है पर पढ़कर ज्ञात हुआ की मानवजीवन के साहित्यिक पक्षों को बिबों और प्रतीकों के जरिए पहचानने का प्रयास किया गया है |

अच्छी रचना है |मुबारकबाद कबूल करें |

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 29, 2018 at 8:51pm

उम्दा कविता हुई आदरणीय..

Comment by Samar kabeer on March 29, 2018 at 5:37pm

पक्षी केलिए 'तीतर' और "बीतर"?

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 29, 2018 at 3:15pm

बिल्कुल सही कहा है आपने। बहुत-बहु शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब। पक्षी के लिए 'तीतर' शब्द लिया है प्रतीकात्मक रचना के लिए! 

Comment by Samar kabeer on March 29, 2018 at 3:01pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत उम्दा अतुकान्त कविता,शब्दों का खेल,ग़ज़ल हो या कविता या लघुकथा,सब शब्दों का खेल ही तो है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

दूसरी पंक्ति में 'तीतर-बीतर' को "तितर बितर" कर लें ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 29, 2018 at 2:41pm

इतने ग़ौर से रचना को पढ़ने और अनुमोदन के साथ हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब।

Comment by Mohammed Arif on March 29, 2018 at 8:05am

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,

                                        बहुत ही शानदार , प्रभावोत्पादक और सशक्त कविता । शब्द विन्यास क्या ख़ूब ढूँढकर लाएँ हैं आप । शब्दों का क्रमश: उचित चयन काबिले तारीफ है और साथ ही साथ कविता में पीछा करता कटाक्ष भी । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

                                              आज सुबह एक अच्छी रचना पढ़ने को मिली ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
11 hours ago
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service