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सुना ठीक है सिरफिरा आदमी हूँ- ग़ज़ल

122 122 122 122
सुना ठीक है सिरफिरा आदमी हूँ
उसूलों का पाला हुआ आदमी हूँ।

हमेशा ही जिसने सही बेवफ़ाई
जमाने में वो बावफ़ा आदमी हूँ।

कि मौजें मुझे दूर खुद से करेंगी
अभी मैं भँवर में फँसा आदमी हूँ।

डिगायेगी कैसे मुझे कोई आफ़त
मैं चट्टान जैसा खड़ा आदमी हूँ।

रहा साथ जिसके जरूरत में अक्सर
कहा है उसी ने बुरा आदमी हूँ।

हक़ीक़त मेरी ठीक से जान लेते
कभी ये न कहते मरा आदमी हूँ।

थपेड़े जहाँ के सहे पर न उफ़ की
हमेशा जो तिल-तिल जला, आदमी हूँ।

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by राज़ नवादवी on December 1, 2018 at 11:11am

आदरणीय सतविंद्र जी, आदाब. सुंदर गजल की प्रस्तुति पे हार्दिक बधाई । सादर. 

Comment by Rahul Dangi Panchal on November 27, 2018 at 9:38pm

बहुत सुन्दर भावों के साथ ग़ज़ल का अच्छा प्रयास । जनाब कबीर साहब का आशीर्वाद तो प्राप्त हो गया आपको

Comment by बसंत कुमार शर्मा on November 27, 2018 at 12:50pm

आदरणीय सतविन्द्र कुमार राणा जी सादर नमस्कार

लाजबाब ग़ज़ल हुई 

बहुत बहुत बधाई आपको 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 27, 2018 at 5:22am

आदरणीय तेजवीर जी, सादर नमन, आभार उत्साहवर्धनार्थ

Comment by TEJ VEER SINGH on November 26, 2018 at 8:19pm

हार्दिक बधाई आदरणीय सतविंदर कुमार जी।बेहतरीन गज़ल।

रहा साथ जिसके जरूरत में अक्सर
कहा है उसी ने बुरा आदमी हूँ।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 26, 2018 at 4:26pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सादर नमन! हौंसलाफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 26, 2018 at 4:25pm

आदरणीय समर कबीर जी सादर वन्दन, मार्गदर्शन के लिए सादर हार्दिक आभार।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 26, 2018 at 3:54pm

आ. भाई सतविंद्र जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई । भाई समर जी की बातों का संज्ञान लें । शेष शुभ शुभ..

Comment by Samar kabeer on November 26, 2018 at 2:56pm

जनाब सतविन्द्र कुमार 'राणा' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

कुछ बातें आपके संज्ञान में लाना चाहूँगा ।

सुना है सही सिरफिरा आदमी हूँ
उसूलों पे चलता रहा आदमी हूँ'

मतले के ऊला मिसरे में 'सही' शब्द अस्ल में "सहीह" है जिसका अर्थ है दुरुस्त,औऱ सानी मिसरे में 'रहा' क़ाफ़िया भी ठीक नहीं,इस मतले को यूँ कर सकते हैं:-

'सुना ठीक है सिरफिरा आदमी हूँ

उसूलों का पाला हुआ आदमी हूँ'

' कि मौजें मुझे दूर खुद से करेंगी
मैं तूफाँ के अंदर फँसा आदमी हूँ'

इस शैर को यूँ कर लें तो गेयता बढ़ जाएगी:-

'ये मौजें मुझे दूर ख़ुद से करेंगी

अभी तो भँवर में फँसा आदमी हूँ'

' नहीं कोई आफ़त डिगा मुझको पाती
मैं चट्टान जैसे अड़ा आदमी हूँ'

इस शैर को यूँ कर लें,गेयता बढ़ जाएगी:-

'डिगायेगी कैसे मुझे कोई आफ़त

मैं चट्टान जैसा खड़ा आदमी हूँ'

' जरूरत में मैं ही रहा साथ जिसके'

इस मिसरे को यूँ कर लें,गेयता बढ़ जाएगी:-

'रहा साथ जिसके ज़रूरत में अक्सर'

' तो कहते कभी ना मरा आदमी हूँ।

इस मिसरे को यूँ कर लें:;

'कभी तुम न कहते मरा आदमी हूँ'

' थपेड़े सहे पर, किये वो न जाहिर
हमेशा जो तिल-तिल जला, आदमी हूँ'

इस शैर का ऊला यूँ कर लें:-

"थपेड़े जहाँ के सहे पर न उफ़ की

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