स्वर में अमृत घोलो जी
फिर अधरों को खोलो जी |
नहीं खर्च कुछ होने का
मीठा – मीठा बोलो जी |.
देने वाला कैसे दे ?
हाथ मलिन हैं धो लो जी |
मन से पश्चाताप करो
प्रायश्चित कर रो लो जी |
नाव सम्हल ना पाएगी
इतना भी मत डोलो जी |
मान सहित घर पहुँचा दे
साथ उसी के हो लो जी |
जीवन में क्या दिया-लिया
मन को जरा टटोलो जी |
अधिक जागरण ठीक नहीं
चादर तानो सो लो जी |
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)
Comment
आदरणीय बागी जी,सौरभ पाण्डेय जी,सतीश मपतपुरी जी, वीनस केसरी जी,कुमार गौरव जी,लडीवाला जी,संदीप द्विवेदी जी,फूल सिंह जी,प्राची जी, अशोक रक्ताले जी,संदीप पटेल दीप जी,योगराज प्रभाकर जी,विन्ध्येश्वरी प्रसाद जी और रेखा जी आप सभी का आभार.वर्तमान में गुडगाँव में हूँ. अपने स्वभाव के विपरीत एक ही साथ सभी को आभार प्रकट कर रहा हूँ.किसी अन्य के सिस्टम में दिल खोल कर बात भी तो नहीं हो पाती.१० सितम्बर को जबलपुर लौटूंगा,तब विस्तार से बातें होंगी.क्षमा याचना के साथ.
नहीं खर्च कुछ होने का
मीठा – मीठा बोलो जी |.,अति सुंदर भाव अरुण जी ,बधाई
//नाव सम्हल ना पाएगी
इतना भी मत डोलो जी |//
वाह वाह वह !! बहुत खूब !!
वाह वाह वाह क्या बात है आदरणीय अरुण सर जी क्या सुन्दर प्रवाहमयी सहज शब्दों की ग़ज़ल है
दाद क़ुबूल कीजिये इस मुसलसल ग़ज़ल के लिए
जीवन में क्या दिया-लिया
मन को जरा टटोलो जी |
बहुत सुन्दर भाव आ. निगम साहब बधाई.
सरल सहज सुन्दर सुमधुर ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय अरुण निगम जी
अरुण जी नमस्कार
बहुत ही भावपूर्ण रचना.....बधाई....
फूल सिंह
नहीं खर्च कुछ होने का
मीठा – मीठा बोलो जी;
अधिक जागरण ठीक नहीं
चादर तानो सो लो जी;
सरल शब्दों में गहन भाव! वाह! बधाईयां श्रीमान!
बहुत भाती बच्चो को भी सुहाती रचना बधाई अरुण कुमार निगम भाई
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