For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आप जब से मेरी जिन्दगी हो गई ।

आप जब से मेरी जिन्दगी हो गई ।

 

आप जब से मेरी जिन्दगी हो गई ।

सारी दुनिया से मेरी दुश्मनी हो गयी ॥

आप को जो हमराज मै कह गया ।

तो दोस्तो से मेरी दुश्मनी हो गयी ॥  1 ॥

 

नूर चेहरे का तेरे चाँदनी दे गया ।

देख कर चाँद भी तुझको शरमा गया ।

जो चाँद पूनम का मै तुम्हे कह गया ।

तो चाँद से भी मेरी दुशमनी हो गयी  ॥   2 ॥

शायरो की शहर मे कल महफिल सजी ।

सबने अपनी मुक्कमल गजल थी पढी ।।  

जो मै तुम को अपनी गजल कह गया ।

तो शायरो से मेरी दुशमनी हो गयी   ।। 3 ॥

आप कल बाग मे जो गये घूमने ।

सारे भँवरे लगे आप को घूरने ।।

तेरे होंठो को जो मै कली कह गया ।

तो फूलो से मेरी दुशमनी हो गयी  ।।  4 ।।

कल जुल्फे जो तूने खुली छोड दी ।

रात दिन मे ही जैसे होने लगी ॥

तेरी जुल्फो को जो, काली घटा कह गया ।

तो बादलो से मेरी दुश्मनी हो गयी  ।। 5 ॥

आंखे तेरी छ्लकते दो पयमाने हुये ।                                                                

बिन पिये ही तेरे हम दिवाने हुये ।।

मै जो बोतल नशे की  तुझे कह गया ।

तो शराबी से मेरी दुशमनी हो गयी  ॥ 6 ॥

 

आप हमको मिले हर खुशी मिल गयी ।

जिन्दगी भी मेरी अब हँसी हो गयी ।

जो आप को हमने अपना खुदा कह दिया ।

तो खुदा से मेरी दुश्मनी हो गयी ।। 7 ।।

"मौलिक व अप्रकाशित"    

Views: 1067

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by MAHIMA SHREE on August 7, 2013 at 12:16pm

शायरो की शहर मे कल महफिल सजी ।
सबने अपनी मुक्कमल गजल थी पढी ।।
जो मै तुम को अपनी गजल कह गया ।
तो शायरो से मेरी दुशमनी हो गयी ।। 3 ॥
बहुत ही खुबसूरत रचना आदरणीय बसंत नेमा जी। । इसे पढ़ कर पुराने हिंदी फिल्मो के गीत याद आने लगे। … बहुत -२ बधाई

Comment by बसंत नेमा on August 7, 2013 at 11:04am

आ0 लक्ष्मण जी  बहुत बहुत शुक्रिया धन्यवाद .... ऐसे ही अपना आषीश मिलता रहे मेरी कलम को लिखने का हौसला मिलता रहे गा  यही कामना करता हू करता रहुंगा.....  

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 7, 2013 at 11:00am

किसी को वह उपमा दे दे जो किसी ओर के लिए है तो इर्षा होना स्वाभिविक ही है, यह प्राणी जगत का स्वभाव है, इसे 

बखूबी इंगित करते हल अच्छी रचना की है | हार्दिक बधाई स्वीकारे श्री बसंत नेमा जी |

अगर ये कहे तो किसे इर्षा होगी -

 तुम हो हमारे दिल में, जैसे है खुदा

 खुदा की तरह तुम भी, न हो जुदा |   

Comment by बसंत नेमा on August 7, 2013 at 10:53am

आदरणीया शुभ्रा जी तहे दिल से आप को धन्यवाद शुक्रिया  ....... आप ने रचना को इतना मान और  समय दिया .... ऐसे ही अपना आषीश देते रहे यही कामना करता रहुंगा 

Comment by shubhra sharma on August 7, 2013 at 10:49am

आदरणीय नेमा जी, बहुत शानदार प्रस्तुति , हर पंक्ति लाजबाब  

नूर चेहरे का तेरे चाँदनी दे गया ।

देख कर चाँद भी तुझको शरमा गया ।

जो चाँद पूनम का मै तुम्हे कह गया ।

तो चाँद से भी मेरी दुशमनी हो गयी  ...............बहुत खूब , बधाई स्वीकार करे 

Comment by बसंत नेमा on August 7, 2013 at 10:47am

आ0 प्राची दीदी .  रचना पे आप के ध्यान का ही इंतजार कर रहा था ....... आप ने रचना को इतना मान और  समय दिया .... ऐसे ही अपना आषीश देते रहे यही कामना करता रहुंगा 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 7, 2013 at 10:44am

बहुत सुन्दर कविता बसंत नेमा जी..

शालीन शृंगार की उपमाओं ने सबको दुश्मन बना दिया...अच्छी सोच है...हार्दिक बधाई इस अभिव्यक्ति पर.

Comment by बसंत नेमा on August 7, 2013 at 10:41am

आ0 अरुण जी तहे दिल से शुक्रिया .धन्यवाद . आप ने रचना को इतना मान और  समय दिया .... ऐसे ही अपना अषीश देते रहे यही कामना करता रहुंगा 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on August 6, 2013 at 10:38pm

आदरणीय बसंत नेमा जी, श्रृंगार -रस छलक-छलक गया है, वाह !!!! सुंदर रचना....

शायरो की शहर मे कल महफिल सजी ।

सबने अपनी मुक्कमल गजल थी पढी ।।

जो मै तुम को अपनी गजल कह गया ।

तो शायरो से मेरी दुशमनी हो गयी ।।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 6, 2013 at 8:35pm

शृंगार रस में रची गई रचना प्रभावशाली है| बधाई|

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
7 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
18 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service