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"भाभी कहाँ से लायी हो इतनी सुन्दर दुल्हन ? नजर ना लगे", श्यामला ने घूंघट उठाते ही कहा, "..ऐसा लगे है जैसे कौव्वा जलेबी ले उड़ा.."
दूर बैठी श्यामा ने जैसे ही दबी जबान में कहा, खिलखिलाहट से सारा कमरा गूँज उठा ।
"श्यामा भाभी कभी तो मीठा बोल लिया करो.. मेरा भतीजा कहाँ से कव्वा लगता है तुम्हे ? मेरे घर का कोई शुभ काम तुम्हे सहन नहीं होता तो क्यूँ आती हो ?" श्यामला ने आँखें तरेरते हुए श्यामा को कहा।


मुंह दिखाई का सिलसिला चल ही रहा था कि पड़ोस का नन्हें बदहवास-सा दौड़ता हुआ आया और हकलाते हुए बोला, "..श्याऽऽऽ म... ला चाचीऽऽऽऽ... छोरी बगल के खेत में बोरवेल में गिर गईऽऽऽ..."
यह कह कर वो बदहवास ही वापस भागा.

सुनते ही जैसे वहाँ वज्रपात हो गया. श्यामला खूनी नजरों से श्यामा को देखते हुए बोली, "..कब से कह रहे थे उस गड्ढे को ढक दो. रोज टीवी में आवे है कि ऐसे बोरवेलों में बच्चे गिरते हैं... पर तुमने तो एक ना सुनी.. आज मेरी छोरी को कुछ हो गया तो तेरी सात पुश्तों को भी ना छोडूंगी..."  गरजती हुई श्यामला बाहर की और भागी ।


पीछे से श्यामा भी चीखती हुई भागी, " अपनी छोरी को ना रोक सके ? सारा दिन टांग उठाये दौड़ती फिरती है..! छोरी ही तो है.. और पैदा कर लियो... आज तक छोरी ही तो जनती आई है तू...  ",  फिर औरों को देखती हुई बोली, "अब इसके तस्मे ढीले होएंगे.. बड़ी आई थी ग्राम पंचायत में चुनाव लड़ने.."

सब लोग बोरवेल की और भाग रहे थे.  श्यामला पागल सी हो सिर खुल्ले छाती पीटती हुई बोरवेल पर पंहुचकर गिर पड़ी, कि, इतने में दो नन्हे हाथ पीछे से उसके गले में लिपट गए. हतप्रभ श्यामला पत्थर सी हो गई जब उसने देखा, उसकी अपनी बेटी घबराई हुई उससे लिपट रही है. आँखों से आंसुओं का सैलाब बह निकला.  

सब आवाजें मद्धिम होती जा रही थीं.. लोग फुसफुसा रहे थे..  "श्यामा की बेटी को कोई तो बचा लो.... !!!.."     

*******
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on August 31, 2013 at 9:02pm

sundar kahani... khoob seekh... dard praya bhi apne samaan hota ... dusron kee khilli udaane vaale chet jaaye.. samay balvaan hota hai..

Comment by ARVIND BHATNAGAR on August 31, 2013 at 9:01pm

राजेश कुमारी जी

एक लघु कथा मे जो कुछ भी होना चाहिए वो आपकी इस रचना में है , सबसे ज़रूरी आख़िर मे जो punch होना चाहिए वो एक दम  सही जगह पर है जिस से यह  लघु कथा पाठक को अंत मे झटका देने मे समर्थ है | आपको बहुत बहुत बधाई |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 31, 2013 at 8:33pm

विनीता शुक्ला जी कहानी के मर्म को महसूस कर प्रतिक्रिया देने  के लिए हार्दिक आभार |

Comment by Vinita Shukla on August 31, 2013 at 8:19pm

दूसरों के दुःख पर हंसने वाली स्त्री को,  सही सबक तब मिला- जब खुद उसके ऊपर, विपदा आई. संदेशपरक, सार्थक लघुकथा. बधाई राजेश कुमारी जी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 31, 2013 at 6:59pm

 शुभ्रांशु पाण्डेय जी हृदय तल से आभारी हूँ आपको कथा पसंद आई और संतुष्ट हूँ कि  आदरणीय सौरभ जी की कृपा से ये कथा कितनी संप्रेषणीय हो गई है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 31, 2013 at 6:55pm

हार्दिक आभारी हूँ जीतेंद्र गीत जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 31, 2013 at 6:43pm

आदरणीय सौरभ जी किस तरह आपका धन्यवाद करूँ आपने इस लघु कथा को मानो नव जीवन दे दिया हो बस एक बात का प्रण किया की अगली बार इस गलती पर ध्यान दूँगी पनक्च्युएशन का विशेष  ध्यान रखूं गी नो लापरवाही या जल्दी बाजी ,दिल से बहुत- बहुत आभारी हूँ । आदरणीय योगराज जी की भी आभारी हूँ जो इस और ध्यान दिलाया |

Comment by Shubhranshu Pandey on August 31, 2013 at 5:24pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, कथा अब खुल कर सामने आ गयी है. बेटियों के बारे में एक औरत की ही मानसिकता क्या हो सकती है. और किसी के कष्ट को भी व्यंग्य की तरह चुभाया जा सकता है इसका एक बढिया उदाहरण प्रस्तुत किया है. बहुत सुन्दर कथा...

सादर.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 31, 2013 at 4:07pm

 बहुत बढ़िया लघुकथा, हार्दिक बधाई आदरणीया राजेश जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 31, 2013 at 3:23pm

देखिये, कथा की संप्रेषणीयता कुछ बढ़ पायी ?

सादर

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