For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - अभी गुफ़्तार में शामिल बहुत इक़रार बाक़ी है ( गिरिराज भंडारी )

1222     1222     1222     1222 

मुझे लूटो कि कांधों में अभी जुन्नार बाक़ी है

मेरे सर पे अभी पुरखों की ये दस्तार बाक़ी है

 

लड़ाई के सभी जज़्बे तिरोहित हो गये यारों

अना से मेल खाता सा कोई हथियार बाक़ी है

 

इशारों ने इशारों की बहुत बातें सुनी, लेकिन  

अभी गुफ़्तार में शामिल बहुत इक़रार बाक़ी है

 

दरारें जिस तरह खाई बनीं इस से तो लगता है

अभी भी बीच में अपने कोई दीवार बाक़ी है

 

गदा बन कर तेरे दर पे बहुत आया मेरे मौला

मेरे घर में, तेरा आना, मगर इक बार बाक़ी है

 

क़िसी टुट पूंजिये को घेर कर इतना न इतराओ

अभी उस पार सीना ठोकता सरदार बाक़ी है

 

अलाने डे फलाने डे मनाते यूँ न बहको तुम  

मेरे बच्चों अभी राखी सा भी त्यौहार बाक़ी है

 

सँभलना, छू नहीं बातों को मेरी, दूर ही रहना

पुरानी है बहुत लेकिन अभी भी धार बाक़ी है

 

किनारा तो किनारा है समझना क्या इसे यारों

सफ़ीनों के समझने को अभी मझधार बाक़ी है

 

जमाने के सभी फेंके हुये पत्थर हटाया, पर

मेरे अपने ने फेंका था वही इक ख़ार बाक़ी है

 

कहीं ऐसा न हो नफ़रत तुम्हारी ख़ुद बदल जाये

मेरे सीने में सागर सा अभी तक प्यार बाक़ी है 

********************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

 

Views: 1072

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by दिनेश कुमार on March 25, 2015 at 7:07pm
आदरणीय गिरिराज सर जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है। बधाई।
Comment by Samar kabeer on March 25, 2015 at 6:10pm
आली जनाब गिरिराज भंडारी जी,आदाब,बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल हुई है,ग़ज़ल का हर शैर एक से बढ़ कर एक है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |
Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 25, 2015 at 5:35pm

अलाने डे फलाने डे मनाते यूँ न बहको तुम  

मेरे बच्चों अभी राखी सा भी त्यौहार बाक़ी है...क्या बात है 

जमाने के सभी फेंके हुये पत्थर हटाया, पर....भाईसाब हटाया /हटाये ...आप देखिएगा 

कहीं ऐसा न हो नफ़रत तुम्हारी ख़ुद बदल जाये

मेरे सीने में सागर सा अभी तक प्यार बाक़ी है ...क्या बात है ..आदरणीय भाईसाब हर शेर उम्दा गहराई लिए अशारों के इस ग़ज़ल रूपी गुलदस्ते को सलाम   आपको बधाई सादर 

Comment by Sushil Sarna on March 25, 2015 at 5:21pm

जमाने के सभी फेंके हुये पत्थर हटाया, पर
मेरे अपने ने फेंका था वही इक ख़ार बाक़ी है

कहीं ऐसा न हो नफ़रत तुम्हारी ख़ुद बदल जाये
मेरे सीने में सागर सा अभी तक प्यार बाक़ी है

बहुत ही खूबसूरत अशआर कहे है सर आपने …सर अगर बुरा न माने तो क्षमा सहित इस पंक्ति में एक वचन और बहु वचन पर अटक गया हूँ जमाने के सभी फेंके हुये पत्थर हटाया, पर … इसमें फेंके हुये और पत्थर में मेल नहीं हो रहा या तो ये फेंका हुआ हो या पत्थरों हो .... शेष आप अधिक बेहतर जानते हैं … ये मेरा भ्रम भी हो सकता है … कृपय शंका का समाधान करें … कृपया मेरे दृष्टिकोण को अन्यथा न लेवें।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 25, 2015 at 12:32pm

वाह अनुज  ! सुभान अल्लाह.क्या खूबसूरत गजल है  पर भैय्या उर्दू के कठिन शब्द पूरा जायका नहीं  लेने देते , अर्थ भी दिया करो मित्र .

गदा बन कर तेरे दर पे बहुत आया मेरे मौला

मेरे घर में, तेरा आना, मगर इक बार बाक़ी है

कहीं ऐसा न हो नफ़रत तुम्हारी ख़ुद बदल जाये

मेरे सीने में सागर सा अभी तक प्यार बाक़ी

 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 25, 2015 at 11:17am

सभी शेर एक से बढ़ कर एक हैं ...बधाई सुंदर प्रस्तुति के लिये.... सादर 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 25, 2015 at 10:46am
दरारें जिस तरह खाई बनीं इस से तो लगता है

अभी भी बीच में अपने कोई दीवार बाक़ी है वाह वाह!

अभिनंदन आ० गिरिराज सर!!
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 25, 2015 at 10:00am
जमाने के सभी फेंके हुये पत्थर हटाया, पर
मेरे अपने ने फेंका था वही इक ख़ार बाक़ी है
बहुत खूब, बधाई , आदरणीय गिरीराज भंडारी जी , सादर।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 25, 2015 at 9:36am

बहुत शानदार ग़ज़ल 

गदा बन कर तेरे दर पे बहुत आया मेरे मौला

मेरे घर में, तेरा आना, मगर इक बार बाक़ी है....बहुत खूब  वाह 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

दोहा सप्तक. . . . . नजरनजरें मंडी हो गईं, नजर बनी बाजार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार…See More
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"कौन है कसौटी पर? (लघुकथा): विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ.भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"विषय - आत्म सम्मान शीर्षक - गहरी चोट नीरज एक 14 वर्षीय बालक था। वह शहर के विख्यात वकील धर्म नारायण…"
Saturday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उम्र  का खेल । स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।…See More
Saturday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम - सर सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार…"
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपकी लघुकविता का मामला समझ में नहीं आ रहा. आपकी पिछ्ली रचना पर भी मैंने…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service