For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जीवन उजड़ा नक्सल जैसा (गजल) -- मिथिलेश वामनकर

22---22---22---22

 

सूखा है, घर के नल जैसा

जीवन उजड़ा नक्सल जैसा

 

हुक्कामों से प्रश्न हुआ तो

उत्तर होगा बोझल जैसा

 

तेरे आगे मैं ठहरा हूँ

बिलकुल ड्रेसिंग टेबल जैसा

 

रिश्तों का आखेट हुआ है

घर लगता है जंगल जैसा

 

गम जाड़ों-सा हाड़ कंपा दे

भेजो सुख को कम्बल जैसा

 

सिर्फ मुकम्मल गज़लें लिखियें  

क्या होता है फुटकल जैसा ?

 

आप मुसाहिब बनिए भाई

अपना जीवन लोकल जैसा

 

कितना विस्तृत पापा का मन

बिलकुल बरगद पीपल जैसा

 

ख़बरों में फिर शोर हुआ है

सहमी टूटी पायल जैसा

 

लाख हुनर तो तुम दिखलाओं

हर दिन टीवी केबल जैसा

 

ढूंढ न पाया इक भी इंसा 

खोजी था मैं गूगल जैसा

 

देश बहुत ही छूटा पीछे

शब्द उठा जब अंचल जैसा

 

ले डूबेगा कितने ही घर

इस्टेटस ये सिंगल जैसा

 

डरता हूँ मैं उनका मुँह जब

होता बहते काजल जैसा  

 

बीज पकाकर खा जाते हो

होनें भी दो कोंपल जैसा  

 

कोशिश माज़ी से हटने की

खुद को पाया निष्फल जैसा

 

तुम आई, लगता जीवन में  

आया है कुछ संबल जैसा

 

 

------------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
------------------------------------------------------------

Views: 804

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 2, 2015 at 12:39pm

आदरणीय मिथिलेश जी, बड़े ही ख़ूबसूरत अश’आर हुए हैं। दाद कुबूल कीजिए

Comment by Tanuja Upreti on September 2, 2015 at 12:12pm

देश बहुत ही छूटा पीछे

शब्द उठा जब अंचल जैसा

बहुत कुछ कह गयी हैं ये पंक्तियाँ I बधाई मिथिलेश जी 

Comment by Ravi Shukla on September 2, 2015 at 11:26am
आदरणीय मिथिलेश जी वाह वाह वाह ।क्या बात है क्या काफिये निकाल कर लाये है आप ।आम बोलचाल के अल्फ़ाज़ का कितना अच्छा प्रयोग हो सकता है ये आपकी सादा मगर असरदार ग़ज़ल ने सिद्ध कर दिया । मुख़्तलिफ़ जुबान एक ही ग़ज़ल में कहीं भी हाइल नही हो रही । यही वो रचना कर्म है जो भाषाई उदारता को अपनाने और दुराग्रह को छोड़ने के लिए प्रेरित करता है ।
अब कुछ शेर का भी ज़िक्र करना चाहेंगे

..ड्रेसिंग टेबल जैसा । क्या बात है दृश्य साकार हो गया ।
..पीपल जैसा । बच्चों के नुक्त ऐ नज़र से वालदैन की अहमियत से जियादा समर्पण प्रेम और विश्वास को दर्शाता शेर ।
...गूगल जैसा । हा हा हा आज के ज़माने में गूगल बाबा सबसे बड़े खोजी कहलाये जा रहे है उस लिहाज़ से भी जिरदार शेर
शेर की इफरात में किस किस का नाम ले किस का नही
सिंगल जैसा
काजल जैसा
.. सभी बहुत हो खूब हुए है बधाई स्वीकार करिये ।बात का समापन आखरी शेर से
...सम्बल जैसा हमारी दुआ है कि ये इतना वसीअ हो जाए सब इस अहो भाव से ओट प्रोत रहे ।आमीन
ये सम्बल वाला शेर इसलिए भी असरकारक लगा की कुछ दिन पहले आपकी प्रोफाइल से होकर गुज़रना हुआ था और हमारे साथ भी 50 प्रतिशत तो ऐसा ही हुआ है :-)
सुन्दर ग़ज़ल पर झक्कास कांग्रेट्स ।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 1, 2015 at 3:52pm
आदरणीय वामनकर सर एक और बढ़िया ग़ज़ल पर बधाई; प्रयोग के साथ ग़ज़ल के लिए अतिरिक्त बधाई
Comment by मनोज अहसास on September 1, 2015 at 2:58pm
नमस्कार सर
बहुत खूब
शाइरी इसे कहते है
बैक टू बैक
कमाल पर कमाल
बेमिसाल
सादर
Comment by Sushil Sarna on September 1, 2015 at 1:17pm

आदरणीय मिथिलेश भाई छोटी बह्र की शानदार प्रस्तुति है। चंद पंक्तियाँ आपके नज़र :

लिख पाऊँ कुछ कभी मैं तुम सा
खट्टी मीठी रातों जैसा

सपना ये बन जाए कहीं न
उखड़ी उंखड़ी बातों जैसा

बूँद बूँद कर नेह समेटूं
जाती हुई बरसातों जैसा

दे दे पंख कोई मुझे भी
ग़ज़ल की सौगातों जैसा


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 1, 2015 at 11:16am

आदरणीय श्याम नरेन् वर्मा जी... ग़ज़ल की सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार 

Comment by Shyam Narain Verma on September 1, 2015 at 10:50am

क्या बात है .... बहुत उम्दा | बधाई आप को 

 सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कुण्डलिया छंद : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"दोहे के दो पद लिए, रोला के पद चार। कुंडलिया का छंद तब, पाता है आकार। पाता है आकार, छंद शब्दों में…"
31 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion चौपाई : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"सोलह सोलह भार जमाते ।चौपाई का छंद बनाते।। त्रिकल त्रिकल का जोड़ मिलाते। दो कल चौकाल साथ बिठाते।। दो…"
53 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion रोला छंद : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"आदरणीय सौरभ सर, रोला छंद विधान से एक बार फिर साक्षात्कार कर रहा हूं। पढ़कर रिवीजन हो गया। दोहा…"
1 hour ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
22 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सीमा के हर कपाट को - (गजल)-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२कानों से  देख  दुनिया  को  चुप्पी से बोलना आँखों को किसने सीखा है दिल से…See More
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीया प्राची दीदी जी, आपको नज़्म पसंद आई, जानकर खुशी हुई। इस प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा में हैं। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आभार "
yesterday

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय, यह द्वितीय प्रस्तुति भी बहुत अच्छी लगी, बधाई आपको ।"
yesterday

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"वाह आदरणीय वाह, पर्यावरण पर केंद्रित बहुत ही सुंदर रचना प्रस्तुत हुई है, बहुत बहुत बधाई ।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service