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है जनता की समस्या का -( गजल )- लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

नेताई गजल

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1222 1222 1222 1222

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सदन में आप गर आओ वतन की बात मत करना
सहोदर  जैसे आपस में  गबन  की बात मत करना /1

उड़ाए  हमने  चुपके   से  लँगोटों  के  लिए सच है
शहीदों के हों नंगे तन कफन की बात मत करना /2

कभी  तुम  बोल  देते  हो  कभी  हम  बोल  देते हैं
चुनावी बात सबकी ही वचन की बात मत करना /3

दिखा  करते  हैं  फूलों सा मगर फितरत  है शूलों सी
गले आपस में मिलने पर चुभन की बात मत करना /4

हमें सावन के अंधे सा  हरा सब कुछ ही दिखता है
हमारे  सामने  कोई विजन  की  बात  मत करना /5

है जनता  की  समस्या  का  हमारे  पास  डंडा हल
अगर उठ जाए थोड़ा सा दमन की बात मत करना /6

कहा हमने अगर विकसित तो विकसित देश है लोगो
यहाँ  तुम  झोपड़ी या  फिर भवन की बात मत करना /7

मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

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Comment by जयनित कुमार मेहता on December 15, 2015 at 5:39am
आ.लक्षमण जी.. सुन्दर ग़ज़ल के लिए शे'र दर शे'र दाद हाज़िर है।।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 15, 2015 at 12:39am

आदरणीय लक्ष्मण धामी सर जी, शानदार ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं

Comment by Samar kabeer on December 14, 2015 at 10:28pm
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी,आदाब,बहुत ही सुपर क्लास ग़ज़ल है ,अच्छे व्यंग के तीर बरसाए हैं आपने,कटाक्ष भी अच्छे हैं,एक दो मिसरों में बयान साफ़ नहीं हैं,ख़ैर शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

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