For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

धूसरित था मलिन-मुख हम स्वच्छ दर्पण कर रहे

झूठ को अपना लिया हर सत्य से अब डर रहे  

 

अवधान तुमने किया था

हमने उसे माना नहीं

पाखण्ड यौवन का सदा

उद्दाम था जाना नही

पत्र अब इस विटप-वपु के सब समय से झर रहे

 

चेतना या समझ आती

है मगर कुछ देर से

बच नहीं पाता मनुज

दिक्-काल के अंधेर से

जो किया पर्यंत जीवन अब उसी को भर रहे

 

हम अकेले ही नहीं 

संतप्त है इस भाव में

जल रहा है अखिल जग 

भव्-दग्ध चंड अलाव में

नीव जो हमको मिली हम नींव वैसी धर रहे

(मौलिक व् अप्रकाशित )

Views: 762

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 7, 2016 at 7:34pm

इस रचना पर मेरा आना विलम्ब से हो रहा है, आदरणीय गोपाल नारायनजी. भाव पक्ष पर चर्चा करें तो आपके अनुभव से हम मंच पर सदा ही लाभान्वित होते रहे हैं. किन्तु प्रस्तुतियों के शिल्प-पक्ष के प्रति स्पष्ट दृष्टि भी अवश्य बनी रहनी चाहिए. आपकी यह प्रस्तुति किसी कोण से ’नवगीत’ की श्रेणी की नहीं है. दूसरे छन्दों का भी घालमेल असंयत कर रहा है. अनुभव और वरिष्ठता को देखते हुए, साहित्य-प्रयास में शैल्पिक व्यवस्था के प्रति संयत रहना आपका-हमारा धर्म होना चाहिए.

सादर 

Comment by Ram Ashery on May 13, 2016 at 9:42am

अति सुंदर रचना के लिए आपको सहृदय बधाई स्वीकार 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 5, 2016 at 10:56am

आ० रामबली जी --- कहीं कोई गलती नहीं है . बस गीतिका छंद के बीच में कहीं कहीं हरि गीतिका  भी आ गया है . आपके सुझाव से करते  या धरते रहे करने पर छंद का अनुशासन बिगड़ जाएगा . मैंने अब हरिगीतिका  को हटा दिया हा और पूरा गीत गीतिका  में है . यहाँ ब्लॉग में अब सुधार करना उचित नहीं होगा . 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 5, 2016 at 10:50am

आ० केवल जी  गीतिका  की रचना में असावधानी से हरिगीतिका टपक जाती है  बस यही लापरवाही हुयी , मैने इसका पृथक से सुधार कर लिया है .सादर . 

Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 10:33pm

हम अकेले ही नहीं 

संतप्त है इस भाव में

जल रहा है अखिल जग 

भव्-दग्ध चंड अलाव में

नीव जो हमको मिली हम नींव वैसी धर रहे------- आपकी  कविताओं  में भावों  की   गंभीरता में  पिरोये   शब्दों  की  जादूगरी  देखते  ही  बनती  है  . माधुरी  और  अनुशासन  अद्वितीय  है  . बधाई  आपको  आदरणीय डॉ गोपाल  नारायण जी 

Comment by रामबली गुप्ता on March 28, 2016 at 7:31pm
सत्य ही बहुत बहुत ही सुंदर और गूढ़ भावों को समाहित किये हुए इस गीत के लिए हृदयतल से बधाई स्वीकार करें।
कतिपय स्थानों पर मात्राएँ कम ज्यादा हैं।
प्रारम्भ के दो लाइनों में 26(12,14) मात्राएँ हैं जबकि बीच में 28(14,14) भी हैं। हिंदी गीतों में इस प्रकार के मात्रात्मक दोष स्वीकार्य नही हैं। इससे लय में भिन्नता आने लगती है और गेयता भी प्रभावित होती है। एक बार पुनः देखने की आवश्यकता है।
मेरा व्यक्तिगत मत है कि "कर रहे, डर रहे,झर रहे, धर रहे" के स्थान पर "करते रहे, डरते रहे, झरते रहे, धरते रहे" रख कर देखे यदि आपको उचित लगे। बाकी सब शुभ शुभ।सादर
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 28, 2016 at 5:37pm

आ० गोपाल सर जी, सादर प्रणाम! इस नवगीत के प्रयास के लिये हार्दिक शुभकामनाएं....आपने यहां १४,१२ मात्राओं को लेकर सुंदर मुखड़ा लिखा फिर ....आप भटक गये. एक बार पुन: देख लें. सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 24, 2016 at 6:42pm

आ० सतविंदर जी , शुक्रिया , सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 24, 2016 at 6:41pm

आ ० चौहान जी , बहुत बहुत आभार.

Comment by Ravi Shukla on March 23, 2016 at 10:49pm
आदरणीय डा गोपाल नारायण जी बहुत सुन्दर गीत लिखा है गूढ़ भाव लिए हुए । बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
6 hours ago
anwar suhail updated their profile
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service