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ग़ज़ल मनोज अहसास(इस्लाह के लिए)

221 2121 1221 212

बेचैनियों के रंग सवालो में भर गये
मंज़िल से पूछता हूँ कि रस्ते किधर गये

दिल को निचोड़ा इतना कि अहसास मर गये
खुद को बिगाड़ कर तुझे हम पार कर गये

मुझको उदास देखा जो मिलने के बाद भी
वो अपने दिल का दर्द बताने से डर गये

पूनम की शब का चाँद जो खिड़की पे आ गया
कमरे में मेरे यादों के गेसू बिखर गये

साहिल की कैद में कहीं जलती है इक नदी
मेरे ख्याल रेत के दरिया में मर गये

वीरानियों को अपना मुकद्दर समझ लिया
सारे फरेब सहके वो चुप में उतर गये

महताब पर नहीं है हवा भी सकून भी
सन्नाटा दिल में भरने को हम क्यों उधर गये

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by rajesh kumari on April 6, 2016 at 1:25pm

मनोज कुमार एहसास जी ये आपकी ग़ज़ल बहुत पसंद आई शानदार लिखा है आपने दिल से बधाईयाँ लीजिये 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 6, 2016 at 11:10am

आ0 भाई मनोज जी इस बेहतरीन गजल के लिए दिली बधाई ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 6, 2016 at 10:43am

बहुत ख़ूब...बधाई आप को ..
पूनम की शब का चाँद जो खिड़की पे आ गया
कमरे में "उनकी" यादों के "पहलू" बिखर गये

Comment by मनोज अहसास on April 5, 2016 at 10:35pm
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय ब्रज साहब
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 5, 2016 at 10:32pm
क्या खूबसूरत ग़ज़ल कही आदरणीय वाह हर एक शेर लाज़बाब...
Comment by मनोज अहसास on April 5, 2016 at 8:17pm
बहुत बहुत आभार
आदरणीय सुशील सरना जी
सादर
Comment by Sushil Sarna on April 5, 2016 at 8:15pm

बेचैनियों के रंग सवालो में भर गये
मंज़िल से पूछता हूँ कि रस्ते किधर गये

दिल को निचोड़ा इतना कि अहसास मर गये
खुद को बिगाड़ कर तुझे हम पार कर गये

वाह आदरणीय वाह दिलकश अहसासों से लबरेज़ इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

Comment by मनोज अहसास on April 5, 2016 at 5:40pm
बहुत बहुत शुक्रिया
सर
Comment by narendrasinh chauhan on April 5, 2016 at 5:24pm

लाजवाब रचना 

Comment by मनोज अहसास on April 5, 2016 at 4:01pm
बहुत बहुत आदरणीया
सादर

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