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एक गजल - जानता हूँ चुनाव होना है

रोज ही भाव-ताव होना है

जानता हूँ चुनाव होना है

 

पाँच वर्षों में’ भर गया वो तो

फिर नया एक घाव होना है

 

कूप सड़कों पे’ बन गये अनगिन

उनका अब रखरखाव होना है

 

कौन कितना कहाँ से लायेगा  

जोड़ना है घटाव होना है

 

धर्म के हो गए हैं’ गठबंधन

जातियों का जुडाव होना है

 

शांति हमको कहीं नहीं भाती

हर जगह अब तनाव होना है

 

गाल हैं ये गरीब के, इन पर   

आँसुओं का बहाव होना है

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

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Comment by gumnaam pithoragarhi on July 31, 2018 at 10:20pm

वाह सरकार जी खूबसूरत ग़ज़ल कही है वाह.   .

Comment by TEJ VEER SINGH on July 31, 2018 at 8:44pm

हार्दिक बधाई आदरणीय बसंत कुमार जी।बेहतरीन गज़ल।

पाँच वर्षों में’ भर गया वो तो

फिर नया एक घाव होना है

Comment by Naveen Mani Tripathi on July 31, 2018 at 8:30pm

शानदार मतला

Comment by Naveen Mani Tripathi on July 31, 2018 at 8:29pm

आ0   बसन्त कुमार शर्मा  साहब बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई । मझे हर शेर अच्छे लगे । बाकी गुण दोष ग़ज़ल के विद्वान् देझेंगे । मेरी ओर से हार्दिक बधाई

Comment by Shyam Narain Verma on July 31, 2018 at 5:13pm
क्या बात है .... बहुत उम्दा | बधाई आप को  सादर
Comment by Neelam Upadhyaya on July 31, 2018 at 4:44pm

आदरणीय बसंत कुमार जी, सुन्दर  रचना की प्रस्तुति।  हार्दिक बधाई। 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 31, 2018 at 3:37pm

आदरणीय Sushil Sarna जी दिल से शुक्रिया आपका 

Comment by Sushil Sarna on July 31, 2018 at 3:18pm

रोज ही भाव-ताव होना है

जानता हूँ चुनाव होना है

पाँच वर्षों में’ भर गया वो तो

फिर नया एक घाव होना है
वाह आदरणीय क्या वर्तमान का चित्रण किया है। अति सुंदर। हार्दिक बधाई।

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