For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पागल मन ..... (400 वीं कृति )

पागल मन ..... (400 वीं कृति )

एक
लम्बे अंतराल के बाद
एक परिचित आभास
अजनबी अहसास
अंतस के पृष्ठों पे
जवाबों में उलझा
प्रश्नों का मेला
एकाकार के बाद भी
क्यूँ रहता है
आखिर
ये
पागल मन
अकेला

तुम भी न छुपा सकी
मैं भी न छुपा सका
हृदय प्रीत के
अनबोले से शब्द
स्मृतियाँ
नैन घनों से
तरल हो
अवसन्न से अधरों पर
क्या रुकी कि
मधुपल का हर पल
जीवित हो उठा
मन हस पड़ा
साथ
आभास हो गया
और आभास
सदा का
साथ हो गया
स्मृतियाँ
अंश हो गई
एकाकी जीवन की
न जाने
किसकी श्वासों से
अपनी श्वासों को
प्राण देने का
प्रयास कर रह है
ये
पागल मन
अकेला


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 850

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on December 17, 2018 at 6:14pm

आदरणीय  PHOOL SINGHजी सृजन पर आपकी मधुर प्रशंसा का आभारी है।

Comment by PHOOL SINGH on December 11, 2018 at 2:21pm

सूंदर रचना बधाई स्वीकारे

Comment by Sushil Sarna on November 13, 2018 at 6:59pm

आदरणीय राज़ नवादवी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार। गृह निवास से बाहर होने के कारण आभार व्यक्त न कर सका , क्षमा चाहता हूँ।

Comment by राज़ नवादवी on November 4, 2018 at 3:32pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,सुन्दर  कविता के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें । सादर. 

Comment by Sushil Sarna on October 17, 2018 at 7:27pm

आदरणीय  V.M.''vrishty''जी सृजन पर आपकी मधुर प्रशंसा का आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on October 17, 2018 at 7:25pm

आदरणीय डॉ छोटेलाल सिंह जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on October 17, 2018 at 7:25pm

आदरणीय नरेंद्र सिंह चौहान जी सृजन पर आपकी मधुर प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on October 17, 2018 at 7:24pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on October 17, 2018 at 7:23pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... सर प्रस्तुति के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार।

Comment by V.M.''vrishty'' on October 17, 2018 at 1:02pm
आदरणीय सुशील सरना जी,प्रणाम! अनुभूति की गहराई लिए बेहद खूबसूरत रचना। बहुत बहुत बधाई!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
12 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service