३ क्षणिकाएं....
भावनाओं की घास पर
ओस की बूंदें
रोती रही
शायद
बादलों को ओढ़कर
रात भर
चांदनी
... ... ... ... ... ... .
गोद दिया
सुबह की ओस ने
गुलाब को
महक
तड़पती रही
अहसासों के बियाबाँ में
यादों की नोकों पर
... ... ... .. .. .. .. . .
आकाश
ज़िंदगी भर
इंसान को
छत का सुकून देता रहा
उसे
धूप दी, पानी दिया ,
ईश के होने का
अहसास दिया
मगर
वह रे इंसान
आया जो वक्त देने का
भर दिया उसका दामन
चिता में जल के
धुएँ के गुबार से
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।
आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। बढ़िया क्षणिकाएँ रची आपने। बधाई स्वीकार कीजिये
आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज जी सृजन आपकी आत्मीय प्रशंसा की दिल से आभारी है।
आदरणीय narendrasinh chauhan जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय Sheikh Shahzad Usmani जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार /
वाह सुन्दर बहुत सुन्दर रचनाये...
खुब सुन्दर रचनाए
अलंकृत बिम्बों में बेहतरीन सारगर्भित विचारोत्तेजक सृजन। हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना साहिब।
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब। ... सृजन आपकी आत्मीय प्रशंसा एवं सुझाव का दिल से आभार।
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत उम्दा क्षणिकाएं हुई हैं,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
'रोती रही'--"रोती रहीं"
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