For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अजनबी लगता है ... ...

अजनबी लगता है ... ...

न वज़ह पूछी
न मौका मिला
वक्त सरकता रहा
कोई अपना
हर लम्हा
अजनबी लगता रहा

किसे आवाज़ दूँ
तारीकियों की क़बा में
उजालों को ओढ़ कर
खो गयी कोई तलाश
टूट गया
उसके साये होने का भ्रम
बावज़ूद ज़िस्मानी करीबी के
वो हर नफ़स
जाने क्यूँ
अजनबी लगता रहा

झूठ है
वो अजनबी है
मेरी तिश्नगी का
समंदर है वो
मेरे हर ख्वाब का
मंज़र है वो
मेरे ज़ह्न में सदियों से पोशीदा
नर्म अहसासों की
हकीक़त है वो
मेरा आग़ाज़ है वो
मेरा अंजाम है वो
बिस्तर की हर शिकन
उसके शीरीं से
रुमानियत भरे लफ़्ज़ों से महकती है

न,न
वो अजनबी नहीं हो सकता
मगर हाँ
सच कहूँ तो मुझे
उसमें में छुपा
वो पहला अजनबी
बहुत अज़ीज़ लगता है
वो तो कोई और होगा
जो बेताब नज़रों को
अजनबी लगता है

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित



Views: 538

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 8, 2018 at 8:33pm

वाह आदरणीय बहुत ही सुन्दर कविता..

Comment by Neelam Upadhyaya on October 8, 2018 at 12:12pm

आदरणीय सुशिल सरना  जी, अच्छी रचना की प्रस्तुति पर  बधाई स्वीकार करें। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 7, 2018 at 5:25am

आ. भाई सुशील जी, बेहतरीन रचना हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by narendrasinh chauhan on October 6, 2018 at 5:42pm

खुब सुन्दर रचना आदरणिय

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on October 6, 2018 at 1:18pm

आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बेहतरीन कविता का सृजन किया उम्दा भाव के साथ आकर्षक पंक्तियाँ लिखने के लिए बहुत बहुत बधाई

Comment by Samar kabeer on October 6, 2018 at 12:31pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत उम्दा कविता हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 5, 2018 at 9:44pm

बेहतरीन सृृृजन। रूमानियत और वह अजनबी! वाह। हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना साहिब।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service