(फाइ ला तुन _फ इ लातुन _फ इ लातुन _फे लुन)
घर की बर्बादी के हालात नज़र आते हैं |
उनके तब्दील खयालात नज़र आ ते हैं |
सिर्फ़ मेरी ही नहीं उनसे तलब मिलने की
वो भी मुश्ताक़े मुलाकात नज़र आ ते हैं |
जिनके वादों ने हसीं ख्वाब दिखाए मुझको
उफ़ बदलते हुए वो बात नज़र आ ते हैं |
उनकी यादों को भुलाऊँ तो भुलाऊँ कैसे
वो तसव्वुर में भी दिन रात नज़र आ ते हैं |
बे असर यूँ न हुईं मेरी वफाएँ यारो
उनके सोए हुए जज़्बात नज़र आ ते हैं |
ख़ास जो दोस्त हैं मिलती है यह उन में खसलत
वक्ते मुश्किल वो सदा साथ नज़र आ ते हैं |
ज़ख़मे नौ देता है तस्दीक वो हर दिन फ़िर भी
तुम को आसारे इना यात नज़र आ ते हैं |
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
वाह वाह आदरणीय तस्दीक साहब बढिया गजल हुई है मुबारक बाद पेश करता हूँ
उनकी यादों को भुलाऊँ तो भुलाऊँ कैसे
वो तसव्वुर में भी दिन रात नज़र आ ते हैं | रवायती अंदाज का शेर बहुुत पंसद आया पुनः बघाई
वाह बहुत खूब ग़ज़ल हुई ।जनाब तस्दीक अहमद खान साहब बधाई आपको ।
जनाब भाई लक्ष्मण धामी साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
मुह तरमा बबिता साहिबा, ग़ज़ल पर आपकी सुंदर प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
मुहतरम जनाब समर साहिब आ दाब , ग़ज़ल पर आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
जनाब किशोर साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
बेहतरीन गजल,हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा,आदरणीय सरजी।
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
बेहतरीन ग़ज़ल केलिये मुबारकवाद स्विकार करें आदरणीय तस्दिक अहमद खाए साहब
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