जब से देखा है उन्हें'रहा न खुद का ज्ञान।
जादूगरनी या कहूँ'मद से भरी दुकान।।1
दुख की रजनी जब गयी'सुख का हुआ प्रभात।
तरुअर देखो झूमते'नाच रहे हैं पात।।2
उपवन में ले आ गयीं'अनुपम एक सुगंध।
मन भँवरे ने कर लिया'जीने का अनुबंध।।3
मन उपवन में बस गया'उनका उजला चित्र।
बाकी सब धुँधला दिखे'अब तो मुझको मित्र।।4
नीति नियम हों साथ में'नेह भरा लघु कोष।
हिय उपवन में तब रहे'परम शांति संतोष।।5
मानवता की जीत हो,आपस में हो प्यार।।
नेह दीप जलता रहे,ऐसा हो त्यौहार।।6
काव्य सृजन का मैं सदा'करता हूँ रसपान।।
दर्दों पर औषधि यहीं'कोमल मृदुल निदान।।7
आपस में सौहार्द्र हो'आपस में हो प्यार।
छोटी छोटी बात पर'करे नहीं तकरार।।8
सब मिट्टी का है बना,शीशे की दीवार।
तेरा मेरा कुछ नहीं'फिर क्यों है तकरार।।9
उनकीं नज़रों से मिला'उत्तर यूँ इंस्टेंट।।
बेसुध सा मैं हो गया'मानों लगा करंट।।10
जीने में आये मज़ा'कुछ ऐसा कर डूड।
गम में यूँ कर लीजिये'खुशियाँ भी इन्क्लूड।।11
सब मतलब के दोस्त हैं'सब मतलब के यार।
कर ही लूँ अब सोचता'दुश्मन से ही प्यार।।12
देख देख घायल हुआ'अधर गुलाबी रंग।
कंचन काया साथ में'मृदुल अधखुला अंग।।13
-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
सुन्दर दोहे आपको हार्दिक बधाई,पाठक जी !
बहुत अच्छी दोहावली है बहुत बहुत बधाई |
संत जी ने लगा लिया'फिर से वही दुकान।---लगा संत जी ने लिया ---करेंगे तो सही रहेगा
अंधे बहरे संग है'ढोंग रहा सामान।।
उनकीं नज़रों से मिला'यूँ जवाब इंस्टेंट।।---सम चरण दुबारा देख लीजिये ---उत्तर यूँ इंस्टेंट हो सकता है
बेसुध सा मैं हो गया'मानों लगा करंट।। करेंट
देखा देख घायल हुआ'अधर गुलाबी रंग।---देख देख घायल हुआ
कंचन काया और है'मृदुल अधखुला अंग।।--सम चरण में गेयता भंग है
दुःख की रजनी जब गयी'सुख का हुआ प्रभात।----दुख कर लीजिये विसर्ग आने से दुःख त्रिकल हो गया है
तरुअर देखो झूमते'नृत्य कर रहे पात।।---नाच रहे हैं पात ---करेंगे तो गेयता सही होगी (वैसे ये दोहा बहुत उत्कृष्ट है )तरवर /तरुवर सही शब्द
सब मतलब के दोस्त हैं'सब मतलब के यार।
कर ही लूँ अब सोचता'दुश्मन से ही प्यार।।----बहुत सुन्दर दोहा
राम शिरोमणि जी बहुत बढ़िया दोहे लिखें हैं बस थोड़ा सा ये सुधार कर लेंगे तो सोने पे सुहागा हो जाएगा
आपको हार्दिक बधाई
सुंदर भाव रचित दोहों को पढ़कर ख़ुशी हुई, हार्दिक बधाई श्री रामशिरोमणि पाठक जी |
संत जी ने लगा लिया'फिर से वही दुकान। - विषम चरण में लय भंग है,
अंधे बहरे संग है'ढोंग रहा सामान।। -------- सम चरण का अर्थ स्पष्ट नही हो रहा है - सामान ढ़ोना होता ही - ढोंग ?
छोटी बातों पर न हो'आपस में तकरार ----- यहाँ भी लय भंग लग रही है - "छोटी छोटी बात पर, करे नहीं तकरार" कैसा रहेगा
जीने में आये मज़ा'कुछ ऐसा कर डूड।
गम में यूँ कर लीजिये'खुशियाँ भी इन्क्लूड।।---- डूड और इन्क्लूड शब्द भी अटपटे लग रहे है
देखा देख घायल हुआ'अधर गुलाबी रंग।------ देखा लो भी देख करले वरना 14 मात्राए हो रही है - देख देख घायल हुआ
कंचन काया और है'मृदुल अधखुला अंग।
सुंदर सन्देश देते दोहे कतिपय सुधार के साथ मानक दोहे हो सकते है | बधाई
वाह! हर दोहा सधा हुआ और अर्थपूर्ण
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online