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तरही ग़ज़ल नम्बर 2

नोट :-"तरही मुशायरे में जितनी ग़ज़लें शामिल हुईं, इस ग़ज़ल के क़वाफ़ी उन सबसे अलग हैं"

मफ़ऊल फ़ाइलातु मुफ़ाईल फ़ाइलुन

लेकर गई है हमको जिहालत कहाँ कहाँ
मांगी है तेरे वास्ते मन्नत कहाँ कहाँ

ये आज तेरे पास जो दौलत के ढेर हैं
सच बोल तूने की है ख़ियानत कहाँ कहाँ

अब तक भरी हुई थी जो तेरे दिमाग़ में
फैलाई है वो तूने ग़िलाज़त कहाँ कहाँ

तूने वतन को बेचा है अपने मफ़ाद में
होती है देखें तेरी मज़म्मत कहाँ कहाँ

फ़हरिस्त इसकी अब तो बताना फ़ुज़ूल है
हमने उठाई है ये हज़ीमत कहाँ कहाँ

आती है शर्म तुझको बताते हुए "समर"
तेरी बनी है इश्क़ में दुर्गत कहाँ कहाँ

___

मन्नत :- मान,नियाज़,भेंट
ख़ियानत :- ग़बन, धोका,फ़रेब, दग़ा
ग़िलाज़त :- गन्दगी
मफ़ाद :- फ़ायदा
मज़म्मत :- निंदा
फ़हरिस्त :- सूची
फ़ुज़ूल :- बेकार
हज़ीमत :- हार,शिकस्त
दुर्गत :- ख़राबी


--समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 4, 2017 at 11:48am
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही है आदरणीय..सादर..

लेकर गई है हमको जिहालत कहाँ कहाँ
मांगी है तेरे वास्ते मन्नत कहाँ कहाँ

ये आज तेरे पास जो दौलत के ढेर हैं
सच बोल तूने की है ख़ियानत कहाँ कहाँ
बेहतरीन
Comment by नाथ सोनांचली on August 4, 2017 at 4:26am
आद0 उस्ताद समर साहब प्रणाम, बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कहीं आपने,पहली की भांति की अत्यंत खूबसूरत। क्वाफी भी आप ने चुन चुन कर लिए। दाद के साथ मुबारकबाद पेश है।सादर
Comment by Mohammed Arif on August 3, 2017 at 11:09pm
ये आज तेरे पास जो दौलत के ढेर हैं
सच बोल तूने की है ख़ियानत कहाँ कहाँ । बहुत ही सच्चा शे'र है ।प्रासंगिक शे'र है ।

तूने वतन को बेचा है अपने मफ़ाद में
होती है देखें तेरी मज़म्मत कहाँ कहाँ । वाह!वाह!! क्या कहने क्या कहने ।
शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब ।
Comment by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on August 3, 2017 at 8:54pm
Comment by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on August 3, 2017 at 8:50pm

 क्या बात, क्या बात क्या बात।
वाह बहुत ही उम्दा ग़ज़ल.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 3, 2017 at 6:54pm
आदरणीय समर सर बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुयी हैउर्दू के नए शब्दों की जानकारी हुयी इस रचना के लिए ढेर सारी बधाई प्रेषित है सादर
Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 3, 2017 at 11:51am
क्या बात, क्या बात क्या बात।
वाह वा आ समर सर
दूसरी ग़ज़ल भी भरपूर हुई है।
दिल से बधाई

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