फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फेलुन
लोग हैरान थे,रिश्ता सर-ए-महफ़िल बाँधा
उसने जब अपनी रग-ए-जाँ से मेरा दिल बाँधा
हर क़दम राह मलाइक ने दिखाई मुझ को
मैंने जब अज़्म-ए-सफ़र जानिब-ए-मंज़िल बाँधा
जितने हमदर्द थे रोने लगे सुनकर देखो
अपने अशआर में जब मैंने ग़म-ए-दिल बाँधा
जल गये जितने सितारे थे फ़लक पर यारो
अपनी ज़ुल्फ़ों में जब उसने मह-ए-कामिल बाँधा
शुक्र तेरा करें किस मुंह से बता ऐ यारब
तूने चाहत की रसन से हमें शामिल बाँधा
तुझ पे क़ुर्बान मुसव्विर तेरे फ़न पर क़ुरबाँ
तूने मंज़र मेरे मिट जाने का तिल-तिल बाँधा
कर्बला वालों की तारीख़ "समर" याद आई
उसने जब तिश्ना लबों को लब-ए-साहिल बाँधा
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मलाइक--फ़रिश्ते
फ़लक--आकाश
मह-ए-कामिल--पूरा चाँद
रसन--रस्सी
मुसव्विर--चित्रकार
तिश्ना लबों--प्यासों
लब-ए-साहिल--किनारे
'समर कबीर'
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समर साहब जी सादर अभिवादन आपकी गजल पढ़कर बहुत आनंद की अनुभूति हुई ,कमाल की गजल लिखने के लिए दिली मुबारकबाद कुबूल कीजिये
जनाब रवि शुक्ला जी आदाब, ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
वाह वाह आदरणीय समर क्या अंदाज़े बयाँ है आपकी ग़ज़ल में हर शेर अपनी रवानी और कथ्य की गहराई के साथ मौजूद है ग़ज़ल में । दिली शुक्रिया आपका । मुबारक बाद कुबूल करें ।
जनाब डॉ.आशुतोष मिश्रा जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
आदरणीय समर सर ..उम्दा शेरो की इस ग़ज़ल पर आपको हार्दिक बधाई ..आपकी ग़ज़ल और आपनी प्रतिक्रियाओं से बहुत कुछ सीखने को मिलता है सादर प्रणाम के साथ जितने हमदर्द थे रोने लगे सुनकर देखो
अपने अशआर में जब मैंने ग़म-ए-दिल बाँधा..ये शेर बेहद पसंद आया
जनाब दिनेश कुमार जी आदाब,ग़ज़ल पर टिप्पणी देकर आपने उसे काट क्यों दी,समझ नहीं सका
निहायत उम्दा ग़ज़ल हुई है, आदरणीय समर सर। मतले से मक़्ते तक सभी शेर बख़ूबी बाँधे गए हैं। हार्दिक बधाई !! वाह वाह
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आपका ।
वाह सर बेहतरीन शेरों से सजी ग़ज़ल अप्रतिम लगी। हार्दिक बधाई आपको । मन प्रसन्न हुआ ।
जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' साहिब आदाब, ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
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