मैं तो उसकी पे ब पे अंगड़ाइयाँ गिनता रहा
और वो दामन की मेरे धज्जियाँ गिनता रहा
सौ गुनह होते ही पूरे मारना था इसलिये
मैं भी इक शिशुपाल की बदकारियाँ गिनता रहा
मेरे सीने पर सितम की मश्क़ वो करते रहे
और मैं मासूम दिल की किर्चियाँ गिनता रहा
काम जब कुछ भी नहीं था ओबीओ पर दोस्तो
'नूर' साहिब की मैं कूड़ेदानियाँ गिनता रहा
मेरी बर्बादी पे ख़ुश होकर अज़ीज़ों ने "समर"
कितनी छोड़ीं रात भर महताबियाँ गिनता रहा
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पे ब पे---लगातार
मश्क़---अभ्यास
'नूर'---निलेश नूर
म्हताबियाँ---आतिश बाज़ी
'समर कबीर'
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
जनाब निलेश जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
जनाब श्याम नारायण वर्मा जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
आ. भाई समर जी सादर अभिवादन । बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
हार्दिक बधाई आदरणीय समर क़बीर साहब जी। आदाब।लाज़वाब गज़ल।
सौ गुनह होते ही पूरे मारना था इसलिये
मैं भी इक शिशुपाल की बदकारियाँ गिनता रहा
बहुत ख़ूब , मुहतरम समर कबीर साहब !
क्या ख़ूब ग़ज़ल कही है । हर क़ाफ़िया ख़ुद में न सिर्फ़ अलग है लेकिन साथ ही कहीं और देखने में आना भी दुश्वार भी है । मुबारकबाद ! महताबियाँ तो ममेरे लिये नया लफ़्ज़ ही है ।
सौ गुनह होते ही पूरे मारना था इसलिये
मैं भी इक शिशुपाल की बदकारियाँ गिनता रहा---वाह्ह्ह्हह वाह्ह्ह्ह
नीलेश की कूड़ेदानी जिंदाबाद.... हाहाहा
बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है समर भाई जी
सौ गुनह होते ही पूरे मारना था इसलिये
मैं भी इक शिशुपाल की बदकारियाँ गिनता रहा वाह! वाह! बहुत ही मारक क्षमता वाला शे'र ।
शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब ।
वाह वाह वाह आ. समर सर.. क्या कहने
बहुत खूब ग़ज़ल हुई है... इस ज़मीन पर आपकी दूसरी ग़ज़ल के बाद मुझे भी कुछ करना पड़ेगा अब.. और कूड़ेदानी तो लगता है #कालजयी हो जायेगी :))))))
बहुत बहुत बधाई
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