फाइलातून फ़ाइलातुन फाइलुन
दुश्मन-ए-जाँ लरज़ह बर अंदाम है
जब तलक ज़िन्दा हमारा नाम है
सोचने की क़ुव्वतें मफ़लूज हैं
मुल्क में सबको हुआ सरसाम है
चूस लेती है बदन का ये लहू
शाइरी भी कितनी ख़ूँँ आशाम है
उसको छूने से भी मुझको डर लगे
इस क़दर नाज़ुक वो गुल अंदाम है
ये तो दीवानों की बस्ती है "समर"
तुम यहां क्यों आ गए क्या काम है
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लरज़ह बर अंदाम--कांपना
मफ़लूज--अपाहिज,जिसे फ़ालिज मार गया हो ।
सरसाम--एक बीमारी जिसमें सर में वरम(सूजन)आ जाती है ।
खूँ आशाम--ख़ून चूसने वाली ।
गुल अंदाम---फूल सा बदन
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
जनाब अजय तिवारी जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
जनाब सलीम रज़ा साहिब आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
हार्दिक बधाई आदरणीय समर क़बीर साहब जी।आदाब ।बेहतरीन गज़ल।
ये तो दीवानों की बस्ती है "समर"
तुम यहां क्यों आ गए क्या काम है
ग़ज़ब कमाल बेमिशाल ..................दिली मुबारकबाद आदरणीय| मंच पर स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आदरणीय समर कबीर साहिब इस बेहतरीन कलाम के लिए ढेरों मुबारकबाद कुबूल करें ,
चूस लेती है बदन से ये लहू
उसको छूने से भी मुझको डर लगे
इस क़दर नाज़ुक वो गुल अंदाम है
गज़ब ... क्या अहसास हैं आदरणीय समर कबीर साहिब ... आपका कोई सानी नहीं। दिल से हर शेर के लिए मुबारकबाद कबूल फरमाएं से।
आदरणीय समर कबीर साहिब आदाब , आपने तो दुश्मनों का क्ष रे निकाल दिया |सच है उनके सिर ही अपाहिज हो गए थे | इस बेमिसाल ग़ज़ल के लिए शेर दर शेर मुबारकबाद कुबूल करें |आदाब
दुश्मन-ए-जाँ लरज़ह बर अंदाम है
जब तलक ज़िन्दा हमारा नाम है
सोचने की क़ुव्वतें मफ़लूज हैं
मुल्क में सबको हुआ सरसाम है
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