For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"विधि-विधान व्यवधान" - [लघुकथा] 26 - शेख़ शहज़ाद उस्मानी

दोनों की अपनी अपनी व्यस्त दिनचर्या। बच्चों को सुबह स्कूल बस स्टॉप पर छोड़ने के बाद थोड़ी सी चहलक़दमी से थोड़ा सा साथ, थोड़ा सा वार्तालाप, शायद रिश्तों में छायी बोरियत दूर कर दे।

"तुम्हें जानकर शायद ख़ुशी हो कि फेसबुक और साहित्यिक वेबसाइट में कुल मिलाकर सत्तर लघु कथाएँ, दो ग़ज़लें, दो गीत, कुछ छंद..... मेरा मतलब तकरीबन हर विधा में विधि-विधान के साथ मेरी रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं।" - लेखक ज़हीर 'अनजान' ने बीच रास्ते में अपनी बीवी साहिबा से कहा। लेकिन सब अनसुना करते उन्होंने एक लम्बी सी साँस लेकर सड़क के किनारे के हरे-भरे पेड़ों की तरफ़ दृष्टिपात किया।

"ग़ज़ब की हौसला अफज़ाई हो रही है तुम्हारे शौहर की इन्टरनेट पर ! दिल्ली के पास रेवाड़ी में साहित्य समारोह में आमंत्रित किया गया है मुझे 21-22 नवम्बर को। दिल्ली में ही 29 को एक बड़े साहित्यिक सम्मेलन में भी बुलाया है।"

बीवी साहिबा ने क़दम और तेज़ चलाकर लम्बी सी साँस ली और कुछ-कुछ अनुलोम-विलोम सी प्रक्रिया सम्पन्न की। अनजान साहब को भी हांफते से हुए अपने क़दम आगे बढ़ाने पड़े।

"यहाँ भी तुम मुझे पीछे छोड़ कर आगे भाग रही हो, क़दम से क़दम मिलाकर, कंधे से कंधा मिलाकर चलियेगा, तभी ज़िन्दगी में लुत्फ़ आयेगा न !"
 होंठ भींचते से हुये फिर वही लम्बी चुप्पी। पार्क में पहुंच कर अनजान साहब ने स्मार्ट फोन से उनकी मर्ज़ी के ख़िलाफ दो फोटो लेकर बमुश्किल एक सेल्फी ले ही ली। घर लौटने पर पूरा ग़ुबार उन पर फूट पड़ा।

" आज तो हद कर दी, मेरी मोर्निंग वाक का सत्यानाश कर दिया । कल से अगर मेरे साथ चलना ही है, तो मोर्निंग वाक के क़ायदे-क़ानून से , समझे ! मुझे किसी भी तरह का ख़लल पसंद नहीं। लम्बी-लम्बी साँसें लीजिए और छोड़िये, तेज़ क़दमों से चलिये या मुझे छोड़िये !"

"और मुझे भी मेरी क़लम चलाते वक़्त किसी तरह का कोई ख़लल या दख़ल पसंद नहीं, समझीं वक़ील साहिबा ! मेरे लेखन के भी कुछ क़ायदे-क़ानून हैं ! तनिक तो हौसला अफज़ाई कीजिएगा या अकेला छोड़िये ! नज़दीक़ रहते हुए भी बस अनजान बने रहियेेगा !" लेखक साहब अपने आँसुओं को नहीं रोक पाये।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 818

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2017 at 3:58am
मेरी इस ब्लोग-पोस्ट पर समय देकर प्रोत्साहित करने के लिए सभी पाठकगण को तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2017 at 3:53am
मेरी इस ब्लोग-पोस्ट पर समय देने एवं प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया सभी पाठकगण को।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 5, 2015 at 8:59am
हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया Pratibha Pandey जी, आदरणीया Janki Wahie जी, आदरणीय Sunil Verma जी, आदरणीय Tej Veer Singh जी और आदरणीय Abid Ali Mansoori साहब मेरी रचना पर अपना अमूल्य समय देकर कथा का मर्म समझते व समझाते तर्क संगत टिप्पणी करते हुए मेरी लघु कथा का मान करते हुए मेरी असीम हौसला अफज़ाई करने के लिए। उम्मीद है मेरी अन्य 25 लघु कथाओं को भी पसंद किया जायेगा।
Comment by Abid ali mansoori on November 4, 2015 at 8:04pm

एक लेखक (रचनाकार) का यह दर्द एक लेखक (रचनाकार) ही समझ सक्ता है, और एक अर्धांगनी का दर्द एक अर्धांगनी, ज़रूरी है दोनो एक दूसरे क साथ दें, जीवन में आगे बढ़ने के लिए यह बेहद ज़रूरी है, वधाई आदरणीय शहज़ाद साहब!

Comment by TEJ VEER SINGH on November 4, 2015 at 5:12pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी!लेखकों के दर्द को बखूबी बयान किया है!

Comment by Janki wahie on November 4, 2015 at 4:31pm
वाह शहज़ाद जी क्या खूब लिखा। मैं सखी की बात से सहमत हूँ।
Comment by pratibha pande on November 4, 2015 at 1:13pm

 आदरणीया कांता जी और राहिला जी ने मेरे भी मन की बात कह दी ',अति सर्वथा वर्जिते ' चाहे वो कोई पैशन हो या प्रोफेशन ,  कथा  बेहतरीन है ,हमेशा की तरह हार्दिक बधाई आपको आदरणीय उस्मानी जी 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 4, 2015 at 12:14pm
आदरणीया कान्ता राय जी प्रथम त्वरित उत्कृष्ट साहित्यिक प्रतिक्रिया देने व प्रोत्साहन देने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद। मोहतरमा राहिला जी व आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहब आपने जो हौसला अफज़ाई की है, उसके लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 4, 2015 at 11:48am

आदरणीय उस्मानी जी बढ़िया लघुकथा हुई है हार्दिक बधाई. आदरणीया कांता जी और आदरणीय राहिला जी की टिप्पणी पढ़कर दिल खुश हो गया. सादर 

Comment by Rahila on November 4, 2015 at 10:31am
मैं आदरणीया कांता दी की बात से पूरी तरह सहमत हूं । आदरणीय उस्मानी जी बहुत उम्दा लेखन है । लेकिन इन हालात के लिये "अति "जिम्मेदार है । हर क्षेत्र में सामंजस्य बना कर रखना ही इन हालातों को थोड़ा काबू में रख सकता है । बहुत बधाई आपको ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service