For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुसल्सल ग़ज़ल (नसीहत प्यार की)

2122 - 2122 - 212

करते हो  इतनी जो  ये तकरार  तुम

कैसे  दिलबर  के  बनोगे   यार  तुम 

तौलते   हो   प्यार   भी   मीज़ान  में 

प्यार को समझे हो क्या व्यापार तुम 

इश्क़ में जब तक  न  होगी हाँ में हाँ 

हो  नहीं  सकते  कभी  दिलदार तुम 

हम-ज़बाँ हों इश्क़ में - पहला सबक़ 

सीख कर  करना  वफ़ा इज़हार तुम

जानेमन जज़्बात  को  समझे  बिना  

पा नहीं सकते किसी का  प्यार तुम

दिल के बदले दिल की चाहत ख़ूब है 

दर्द   सहने   को   रहो   तैयार    तुम 

अब सुकूँ और  नींद भी उड़ जाएगी 

प्यार  का कर  लो  ज़रा इक़रार तुम 

इश्क़  में  लुटने   का  है  ऐसा  मज़ा 

कर  नहीं  पाओगे  बस  इन्कार तुम 

जान  भी  देनी   पड़े   गर   प्यार  में 

सर  झुकाकर रहना बस तैयार  तुम 

चाहतों   में    देर    करना   है   बुरा 

कर दो फ़ौरन  प्यार का इज़हार तुम 

इश्क़ में गर जीतना हो दिल 'अमीर' 

जीतना मत ख़ुद ही जाना हार तुम 

"मौलिक व अप्रकाशित" 

मीज़ान - तराज़ू, तुला, योगफल, पैमाईश, total, scale. 

हम-ज़बाँ - सहमत, एकमत, दोस्त, same opinion, agreed. 

Views: 939

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 10, 2021 at 10:53pm

मुहतरम चेतन प्रकाश जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का बहुत शुक्रिया। आप गुणीजनों की इस्लाह और आशीर्वाद के संबल से सृजनात्मक प्रयास कर रहा हूँ, कृपया स्नेह बनाए रखें। सादर। 

Comment by Chetan Prakash on September 10, 2021 at 6:48pm

आदाब,  'अमीर साहब,  खूबसूरत  ग़ज़ल के हवाले  से अच्छा  और सच्चा प्यार का फलसफा दिया है, आपने ! मँजे  हुए  खिलाड़ी  जान पड़ते हैं, जनाब  आप ! मुबारकबाद  कबूल कीजिए  !

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 7, 2021 at 7:11pm

//वैसे, इस मक्ते पर तनिक और भी समय दिया जा सकता है//

जी, ख़ुश-आमदीद और बहुत शुक्रिया। 

मुहतरम नया मक़्ता लिख दिया है, उम्मीद है कि आपके पैमाने के अनुसार हुआ हो। 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 7, 2021 at 11:41am

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी इस पर भी इस पर भी आपकी राय जानना चाहूँगा :

'इश्क़ में जब भी ज़रूरी हो 'अमीर'

अपने अरमानों पे करना वार तुम'    सादर। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 7, 2021 at 10:02am

आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर जी. 

आपने मक्ते पर मेरे इशारे को न केवल समझा, माकूल परिवर्तन भी कर लिया, यह पारस्परिक समझ की सुंदर मिसाल है, जो ओबीओ के पटल पर प्रश्रय पाता है. 

वैसे, इस मक्ते पर तनिक और भी समय दिया जा सकता है.

शुभ-शुभ 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 7, 2021 at 8:50am

मुहतरम सौरभ पाण्डेय जी आदाब, ऐसे ही ओ बी ओ हमें अज़ीज़ नहीं है, मुझे बेहद ख़ुशी है कि इस ज्ञान की पाठशाला का अब मैं भी संस्थागत छात्र हूँ और आप सब गुणीजन मेरे रहबर। ख़ाकसार की ग़ज़ल पर आप और समर कबीर साहिब जैसी हस्तियों का संज्ञान लेना और दाद देना मेरे लिए बड़ी बात है जिसके लिए मैं (जनाब मनोज कुमार 'अहसास' जी समेत) आप सभी गुणीजनों का बहुत शुक्रगुज़ार हूँ। 

मक़्ते पर आपकी राय से मुत्तफ़िक़ हूँ, ऊला मिसरे मेंं बदलाव कर दिया है एक नज़र देख लें ः 

'प्यार है जज़्बात का झुरमुट 'अमीर'

याद रखना करना जब भी प्यार तुम'    सादर।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 6, 2021 at 11:42pm

आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर साहब, ग़ज़ल अच्छी कही. दाद कबूल करें. 

व्यापार या ब्यौपार के संदर्भ में आदरणीय समर साहब के सौजन्य से दोपहर में ही फोन पर सुन लिया था. आपने व्यापार शब्द को स्वीकार कर लिया, इस हेतु धन्यवाद. 

वस्तुत: कई ऐसे शब्द प्रचलित हो जाते हैं जो भाषा के कोश या लुगत में नहीं होते. परंतु उनका प्रचलन हो जाता है. जब कि वे अशुद्ध होते हैं. जैसे, श्रृंगार, ब्यौपार, दवाईयाँ, जुरूर, जुरूरत इत्यादिक. ये सभी शब्द प्रचलन में हैं, किंतु मानक शब्दकोशों में या लुगत में आप इन्हें नहीं पाएँगे. 

बाकी, ग़ज़ल बेहतर बन पड़ी है. सभी शेर पठनीय और सार्थक हैं, सिवा मक्ते के. 

शुभातिशुभ

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 6, 2021 at 3:57pm

मुहतरम समर कबीर साहिब आदाब, जनाब आपकी बात सर आँखों पर, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ। सादर।

Comment by Samar kabeer on September 6, 2021 at 2:40pm

//ब्योपार' शब्द हिन्दी भाषा के शब्द व्यापार के रूप में बहुत सारे उर्दू दाँ और शाइर अपने कलामों में इस्तेमाल कर चुके हैं, हालांकि कई शाइर 'व्यापार' भी लिखते हैं, चन्द मिसालें 'ब्योपार' शब्द पर पेश करता हूँ//

जनाब अमीरुद्दीन साहिब, सवाल ये है कि "ब्योपार" तो कोई शब्द ही नहीं है, और 'व्यापार' और 'ब्योपार' दोनों का वज़्न एक ही है, तो उचित यही होगा कि "व्यापार" शब्द का ही इस्तेमाल किया जाए ।

वैसे 'ब्योपार' शब्द पर आपने जिन शाइरों की मिसालें पेश की हैं, वो मुस्तनद शाइर तो नहीं हैं न ।

ग़ौर कीजियेगा ।

ग़ज़ल आपने अच्छी कही, उसके लिए बधाई ।      

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 5, 2021 at 9:42pm

जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का बहुत बहुत शुक्रिया जनाब।  सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service