For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल (जो भुला चुके हैं मुझको मेरी ज़िन्दगी बदल के)

1121 -  2122 - 1121 -  2122 

जो भुला चुके हैं मुझको मेरी ज़िन्दगी बदल के 

वो रगों में दौड़ते हैं ज़र-ए-सुर्ख़ से पिघल के 

जिन्हें अपने सख़्त दिल पर बड़ा नाज़ था अभी तक

सुनी दास्ताँ हमारी तो उन्हीं के अश्क छलके

तेरी बेरुख़ी से निकले मेरी जान, जान मेरी 

मुझे देखता है जब तू यूँ नज़र बदल-बदल के

जो नज़र से बच निकलते तेरी ज़ुल्फ़ें थाम लेतीं 

चले कैसे जाते फिर हम तेरी क़ैद से निकल के 

न मिटाओ ठोकरों से मेरी क़ब्र के निशाँ तुम 

इसी बस्ती आ रहोगे कभी तुम भी काँधे चलके

ये उदास-उदास चहरे ये बुझी-बुझी सी आँखें 

ये मक़ाम कौन सा है तेरे शह्र से निकल के 

जो क़सीदे पढ़ रहे हैं तेरी शान में 'अमीर' अब  

यही रुस्वा कल करेंगे तुझे पैंतरा बदल के 

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 941

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 15, 2021 at 3:35pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।  सादर।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 15, 2021 at 12:49pm

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 12, 2021 at 6:19pm

आदरणीय चेतन प्रकाश जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद ज़र्रा नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया जनाब,

पाँचवें शे'र का भाव क़ब्र में दफ़्न मय्यत का क़ब्र के ऊपर चलने-फिरने वालों से यह कहने का है कि ऐसा न करें यह तकलीफ़-देह है, समय आने पर तुम्हें भी दूसरे लोगों के काँधों पर चल कर यहीं आकर दफ़्न होना है। सादर। 

Comment by Chetan Prakash on December 12, 2021 at 6:04pm

आदाब, अमीर साहब, ग़ज़ल अच्छी  हुई  है , बधाई  ! पाँचवे शे'र का सानी देखिएगा, मुझे  रब्त  का  अभाव  लगा  ! सादर 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 11, 2021 at 11:56am

धन्यवाद, आदरणीय ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 11, 2021 at 11:46am

पुन: बधाई 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 11, 2021 at 12:46am

जनाब निलेश शेवगाँवकर जी और मुहतरम समर कबीर साहिब के दर्मियान हुई चर्चा और विवेचन के प्रकाश में यह निष्कर्ष निकला है कि प्रस्तुत ग़ज़ल का मिसरा 'जिन्हें सँगदिली पे अपनी बड़ा नाज़ था उन्होंने' में 'सँगदिली' शब्द को 212 के वज़्न पर लेना उचित नहीं है, अतः मिसरे को बदल कर यूँ कर दिया गया है - 'जिन्हें अपने सख़्त दिल पर बड़ा नाज़ था उन्होंने', दोनों गुणीजनों का सादर आभार। 

Comment by Samar kabeer on December 10, 2021 at 8:40pm

//सवाल यह नहीं है कि इसे लिखा कैसे जाए, सवाल यह है कि दोनों सूरतों में संग का वज़'न क्या हो //

जी, वज़्न तो 'संग दिली' का 2112 ही होगा ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 10, 2021 at 7:23pm
आ. समर सर, 
.
तुझे देख कर लग गया दिल न जाना
कि उस संग-दिल से हमें प्यार होगा
 
मीर तक़ी मीर   
सभी ने संग का वज़'न २१ लिया है ..अमीर साहब का  सँग २ पर है मिसरे में 
सादर 
Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 10, 2021 at 7:19pm

आ. समर सर,
सवाल यह नहीं है कि इसे लिखा कैसे जाए, सवाल यह है कि दोनों सूरतों में संग का वज़'न क्या हो 
सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service