For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122 2122 2122 212 

मित्रवत प्रत्यक्ष सदव्यवहार भी करते रहे
पीठ पीछे लोग मेरे वार भी करते रहे

वो ग़लत हैं जानते थे पर अहेतुक स्नेहवश
हम सभी से मित्रवत व्यवहार भी करते रहे

आपके मंतव्य में थे अन्यथा कुछ अर्थ तो
मौन रहकर भाव से प्रतिकार भी करते रहे

दुष्प्रचारित कर रहे वो क्या कहूँ छल छद्म पर
शत्रुओं का पक्ष लेकर प्यार भी करते रहे

लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम में
अस्तु वो संबंध में व्यापार भी करते रहे

दुख विरह स्वीकार करके प्रेम के सम्मान में
अश्रु का नेपथ्य में सत्कार भी करते रहे

लिजलिजा हो मौन तो कायर समझते हैं सभी
तो अहिंसक शस्त्र पर नित धार भी करते रहे

शांति का हो पथ प्रदर्शित इसलिये बहुधा यहाँ
कर्म हम रणछोड़ के अनुसार भी करते रहे

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 97

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 27, 2025 at 4:12pm

आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है हार्दिक बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 26, 2025 at 9:14pm

आदरणीय रवि भाई , वाह ! बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है , दिली बधाई स्वीकार करें 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 19, 2025 at 6:36pm

आदरणीय रवि शुक्ल भैया,

आपका अलग सा लहजा बहुत खूब है, सादर बधाई आपको। अच्छी ग़ज़ल हुई है।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 16, 2025 at 3:15pm

क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय शुक्ला जी...

लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम में
अस्तु वो संबंध में व्यापार भी करते रहे

दुख विरह स्वीकार करके प्रेम के सम्मान में
अश्रु का नेपथ्य में सत्कार भी करते रहे

शांति का हो पथ प्रदर्शित इसलिये बहुधा यहाँ
कर्म हम रणछोड़ के अनुसार भी करते रहे

वाह वाह अनुपम हरेक शेर कमाल....आपका धन्यवाद इस ग़ज़ल के लिए 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 16, 2025 at 11:04am

आदरणीय रवि भाईजी, इस प्रस्तुति के मोहपाश में तो हम एक अरसे से बँधे थे. हमने अपनी एक यात्रा के दौरान अपने सहयात्रियों को भी इसे सुनाया था. अपरिहार्य कारणों से लेकिन टिप्पणी नहीं कर पाया था.

इस गजल के प्रत्येक शेर पर पहले ढेर ढेर ढेर.. ढेर सारी बधाइयाँ स्वीकार करें.

शांति का हो पथ प्रदर्शित इसलिये बहुधा यहाँ
कर्म हम रणछोड़ के अनुसार भी करते रहे .. 

ऐसी मिसरा-दर-मिसरा तार्किक गजलें पटल पर कम ही आती हैं. 

शुभातिशुभ

Comment by Chetan Prakash on June 15, 2025 at 9:08pm

वाकई  खूबसूरत शुद्ध हिन्दी गजल हुई, आदरणीय!

"कर्म हम रणछोड  के अनुसार भी करते रहे" ।

आदरणीय, भाव की व्याख्या जरूर कीजिए  !

Comment by अजय गुप्ता 'अजेय on June 14, 2025 at 7:56pm

बेहतरीन अशआर हुए हैं आदरणीय रवि जी। सभी एक से बढ़कर एक।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 12, 2025 at 11:48am

अश्रु का नेपथ्य में सत्कार भी करते रहे
वाह वाह वाह ... इस मिसरे से बाहर निकल पाऊं तो ग़ज़ल पर टिप्पणी करूँगा.
क्या ही खूब हो गया है यह आ. रवि जी 
बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
43 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
56 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
Thursday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service