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 चेहरा ये कैसा होता गर आँख नहीं होती.

दिल कैसे फिर धड़कता गर आँख नहीं होती.

रक़ीब से भी बदतर हो जाते कभी अपने.

मालूमात कैसे होता गर आँख नहीं होती.

कितना हसीन है दिल चाक करने वाला.

एहसास कैसे होता गर आँख नहीं होती.

कुर्सी के नीचे बर्छी आखिर रखी है क्यूँ कर.

तहक़ीकात कैसे होती गर आँख नहीं होती.

मिलती औ झुकती - उठती फिर चार होती आँखें.

ये करामात कैसे होती गर आँख नहीं होती.

गीतकार - सतीश मापतपुरी

 

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Comment

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Comment by satish mapatpuri on September 6, 2011 at 1:05am

सौरभ जी और गणेश जी, सराहना के लिए  आदर सहित आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 4, 2011 at 7:35pm

एक समझाती हुई रचना .. बेहतरीन चक्षु-चित्र के साथ..  बधाई.. !


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 4, 2011 at 5:37pm

बहुत खूब सतीश भईया,

खुबसूरत है यह रचना है प्यारी,

कैसे पढ़ पता गर आख नहीं होती .......:-)

 

बहुत ही सुंदर रचना भईया , बहुत बहुत आभार आपका !

Comment by satish mapatpuri on September 3, 2011 at 3:41pm

आशीष जी और अरुणजी हौसला अफजाई के लिए बहुत -बहुत शुक्रिया.

अरुण जी, यह आँख ऐश्वर्या राय की है.आपका सुझाव अच्छा है. 

Comment by Abhinav Arun on September 3, 2011 at 2:58pm

chitr bhi akarshak hai - ye aankhen ..rani hai ya aishwarya ?

satish ji ek aisi bhi pratiyogita bhi ho sakti hai o b o par jismen log chehra pehchaane ... its good idea admin should look into it .

Comment by Abhinav Arun on September 3, 2011 at 2:56pm

kamaal ki rachna kamaal ki pankti -

मिलती औ झुकती - उठती फिर चार होती आँखें.

ये करामात कैसे होती गर आँख नहीं होती.

bahut bahut badhai satish ji !!

Comment by आशीष यादव on September 3, 2011 at 2:21pm

बढ़िया रचना|
 कैसे हम पढ़ पाते आप की रचनाओं को, गर आँख नहीं होती|

Comment by satish mapatpuri on September 2, 2011 at 2:48am

गुरूजी,वन्दना जी और मोनिका जी, सराहना के लिए धन्यवाद.

Comment by monika on September 2, 2011 at 2:27am

वाह बहुत खूब................... क्या कहने

Comment by Rash Bihari Ravi on September 1, 2011 at 1:39pm

vqah kya bat hain sir ji aankh nahi hota to bait kaise hota

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