चेहरा ये कैसा होता गर आँख नहीं होती.
दिल कैसे फिर धड़कता गर आँख नहीं होती.
रक़ीब से भी बदतर हो जाते कभी अपने.
मालूमात कैसे होता गर आँख नहीं होती.
कितना हसीन है दिल चाक करने वाला.
एहसास कैसे होता गर आँख नहीं होती.
कुर्सी के नीचे बर्छी आखिर रखी है क्यूँ कर.
तहक़ीकात कैसे होती गर आँख नहीं होती.
मिलती औ झुकती - उठती फिर चार होती आँखें.
ये करामात कैसे होती गर आँख नहीं होती.
गीतकार - सतीश मापतपुरी
Comment
सौरभ जी और गणेश जी, सराहना के लिए आदर सहित आभार
एक समझाती हुई रचना .. बेहतरीन चक्षु-चित्र के साथ.. बधाई.. !
बहुत खूब सतीश भईया,
खुबसूरत है यह रचना है प्यारी,
कैसे पढ़ पता गर आख नहीं होती .......:-)
बहुत ही सुंदर रचना भईया , बहुत बहुत आभार आपका !
आशीष जी और अरुणजी हौसला अफजाई के लिए बहुत -बहुत शुक्रिया.
chitr bhi akarshak hai - ye aankhen ..rani hai ya aishwarya ?
satish ji ek aisi bhi pratiyogita bhi ho sakti hai o b o par jismen log chehra pehchaane ... its good idea admin should look into it .
kamaal ki rachna kamaal ki pankti -
मिलती औ झुकती - उठती फिर चार होती आँखें.
ये करामात कैसे होती गर आँख नहीं होती.
bahut bahut badhai satish ji !!
बढ़िया रचना|
कैसे हम पढ़ पाते आप की रचनाओं को, गर आँख नहीं होती|
गुरूजी,वन्दना जी और मोनिका जी, सराहना के लिए धन्यवाद.
वाह बहुत खूब................... क्या कहने
vqah kya bat hain sir ji aankh nahi hota to bait kaise hota
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online