आज वह (मानव )
पंचभूत में विलीन हो गया
कुछ भी तो नहीं ले जा सका
सबकुछ
जहाँ का तहां विद्यमान हैं
जब जीवन था
तब उसे फुर्सत था कहाँ ?
न संतुष्टि थी
न खुशिया
नित नए खोज में उलझे
वह प्राणी
भाग रहा था
परन्तु आज सबकुछ
ख़त्म हो गया
खाली हाथ आया था
खाली हाथ ही चला गया l
Comment
adaraniy bagi sir, namaskar , har insaan ko is saty se gujarna padega yah jante huye bhi insaan apne aham me chur hokar is saty ko bhula baithte hain ...........rachana pasand karne ke liye aapka baht-bahut abhaar
sailendra ji , kavita pasand karne ke liye tatha sukhad pratikriya hetu abhaar
bhramar ji ,sakaratmak pratikriya hetu abhaar
सचमुच इंसान ख़ाली हाथ आया है और ख़ाली हाथ ही उसे जाना है| सहज शब्दों में संसार के सबसे बड़े सत्य को प्रस्तुत करने पर हार्दिक बधाई स्वीकारें रीता जी!
न संतुष्टि थी
न खुशिया
नित नए खोज में उलझे
वह प्राणी
भाग रहा था
रचना पर बधाई स्वीकार करें...आदरणीय रीता जी
आदरणीय रीता जी, सादर , बहुत सुंदर तरीके से जीवन की सच्चाई को रचना के माध्यम से बताया है. तब उसे फुर्सत था कहाँ ? के स्थान पर क्या ये ठीक नहीं है तब उसे फुर्सत थी कहाँ ? बधाई.
आदरणीय रीता जी, सादर , बहुत सुंदर तरीके से जीवन की सच्चाई को रचना के माध्यम से बताया है. तब उसे फुर्सत था कहाँ ? के स्थान पर क्या ये ठीक नहीं है तब उसे फुर्सत थी कहाँ ? बधाई.
यथार्थ के आँगन में पनपी इस रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीया रीता जी, सिर्फ और सिर्फ यही सत्य है बाकी सब भुलावा |
जीवन के सत्य को बताती रचना पर बधाई स्वीकार करें
नित नए खोज में उलझे
वह प्राणी
भाग रहा था
परन्तु आज सबकुछ
ख़त्म हो गया
खाली हाथ आया था
खाली हाथ ही चला गया l..
सर्जना जी ..सुन्दर ..जीवन का सत्य दिखाती रचना
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