दोहा सलिला:
अंगरेजी में खाँसते...
संजीव 'सलिल'
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अंगरेजी में खाँसते, समझें खुद को श्रेष्ठ.
हिंदी की अवहेलना, समझ न पायें नेष्ठ..
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टेबल याने सारणी, टेबल माने मेज.
बैड बुरा माने 'सलिल', या समझें हम सेज..
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जिलाधीश लगता कठिन, सरल कलेक्टर शब्द.
भारतीय अंग्रेज की, सोच करे बेशब्द..
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नोट लिखें या गिन रखें, कौन बताये मीत?
हिन्दी को मत भूलिए, गा अंगरेजी गीत..
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जीते जी माँ ममी हैं, और पिता हैं डैड.
जिस भाषा में श्रेष्ठ वह, कहना सचमुच सैड..
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चचा फूफा मौसिया, खो बैठे पहचान.
अंकल बनकर गैर हैं, गुमी स्नेह की खान..
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गुरु शिक्षक थे पूज्य पर, टीचर हैं लाचार.
शिष्य फटीचर कह रहे, कैसे हो उद्धार?.
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शिशु किशोर होते युवा, गति-मति कर संयुक्त.
किड होता एडल्ट हो, एडल्ट्री से युक्त..
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कॉपी पर कॉपी करें, शब्द एक दो अर्थ.
यदि हिंदी का दोष तो अंगरेजी भी व्यर्थ..
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टाई याने बाँधना, टाई कंठ लंगोट.
लायर झूठा है 'सलिल', लायर एडवोकेट..
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टैंक अगर टंकी 'सलिल', तो कैसे युद्धास्त्र?
बालक समझ न पा रहा, अंगरेजी का शास्त्र..
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प्लांट कारखाना हुआ, पौधा भी है प्लांट.
कैन नॉट को कह रहे, अंगरेजीदां कांट..
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खप्पर, छप्पर, टीन, छत, छाँह रूफ कहलाय.
जिस भाषा में व्यर्थ क्यों, उस पर हम बलि जांय..
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लिख कुछ पढ़ते और कुछ, समझ और ही अर्थ.
अंगरेजी उपयोग से, करते अर्थ-अनर्थ..
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हीन न हिन्दी को कहें, भाषा श्रेष्ठ विशिष्ट.
अंगरेजी को श्रेष्ठ कह, बनिए नहीं अशिष्ट..
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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.इन
Comment
सलिल जी के सारे दोहे करते हैं गहरी मार
हिंदी की गहन श्रेष्ठता का वर्णन अपरंपार
आप सभी की गुणग्राहकता को शत-शत नमन.
अभिनव है अविनाश है, हिंदी है मृदु खूब.
सेवक करते वंदना, राष्ट्र-प्रेम में डूब..
ले प्रदीप विन्ध्येश्वरी, सिंह पूजते नित्य.
योगराज महिमा कहें, हिंदी पूज्य अनित्य?
अम्बरीश बागी बनें, राज करें राकेश.
हिंदी सुत लोकेश हैं, हो पायें राजेश..
जूनून की हद तक प्रेम किसे कहते हैं यह आपकी इस दोहावली से साफ़ साफ ज़ाहिर हो रहा है. राजमाता हिंदी के प्रति आपके समर्पण को कोटि कोटि प्रणाम आचार्यवर. लेकिन सोचने वाले बात यह भी तो है कि अंग्रेजी की पूँछ उमेठने से क्या हासिल होगा ? नकेल तो कसनी चाहिए हिन्दी भाषी इलाकों में व्याप्त स्थानीय एवं उपभाषायों के झंडा बरदारों की उस प्रवृत्ति की, जो एक मिशन के तहत राजमाता हिंदी की पीठ में छुरे घोंपने में पूरे दिल-ओ-जान से व्यस्त है.
बिजनेस अंगरेजी भले, 'हिन्दी' हो व्यवहार..
हा हा हा अमित जी याद आ गए... इंग्लिश इज अ व्हेरी फन्नी लैंग्वेज ... बहुत ही शानदार दोहे आचार्य श्री.. नमन आपकी लेखनी को
आदरणीय सलिल सर सादर नमन, बहुत खूबसूरत दोहावली और सही कहा आपने हिंदी भाषा के बिना रहे हीन के हीन,
हार्दिक बधाई स्वीकार करें
इन दोहों के माध्यम से आदरणीय श्री सलिल जी आपने हम सबकी ऑंखें खोलने का स्तुत्य कार्य किया है हार्दिक साधुवाद !! सचमुच हम अपनी भाषा की कितनी अवहेलना कर रहे हैं और इस पर इतरा भी रहे हैं अफसोसनाक है !!
जीते जी माँ ममी हैं, और पिता हैं डैड. जिस भाषा में श्रेष्ठ वह, कहना सचमुच सैड........ गुरु शिक्षक थे पूज्य पर, टीचर हैं लाचार. शिष्य फटीचर कह रहे, कैसे हो उद्धार?.
अंगरेजी में खाँसते, समझें खुद को श्रेष्ठ.
हिंदी की अवहेलना, समझ न पायें नेष्ठ..वाह,,,,,,,,,,,,गज़ब के दोहे
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