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अग्नि प्रज्वलित हुई धरा पर
परिवर्तन एक गढ़ने को
चला काफिला जनतंत्री का
अब नव चिंतन करने को
नकली रूपया नकली वस्तु
खेल हो रहा ठगने को
महंगाई है खून चूसती
बढ़ रही पिसाचिन मरने को
आ रहे विदेशी ठगने अपने
अर्थ तंत्र को चरने को
भ्रष्ट व्यवस्था से लड़ने को
बनो पतंगा जलने को
वेग हमारा तूफानों का
खड़े युद्ध हम करने को
कर्मवीर बन बढ़े चलो अब
आग नहीं अब बुझने को
प्रश्न खड़ा जीवन मृत्यु का
आर-पार कुछ करने को
लायेंगे बदलाव नया अब
संकल्प ह्रदय में धरने को
परोपकारिता हो गंगा जैसी
जन जन मन में बहने को

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Comment

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Comment by Rekha Joshi on June 4, 2012 at 7:23pm

Umashankar ji ,बनो पतंगा जलने को
वेग हमारा तूफानों का
खड़े युद्ध हम करने को,badhiya likha hae aapne ,badhai 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 4, 2012 at 6:35pm
अच्छे और आदर्श भाव है , बधाई  |-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला
Comment by UMASHANKER MISHRA on June 4, 2012 at 5:45pm

आदरणीय योगोराज प्रभाकर जी आपके स्नेह के हम कायल हैं आपके सहयोग पर सदैव नत

आदरणीय कुशवाहा जी स्नेह बनाये रखे

योगी सारस्वत शुक्रिया ....सहयोग के लिए

प्रिय चन्दन राय धन्यवाद बस ऐसी ही  खुश्बू बनाये रखें

Comment by chandan rai on June 4, 2012 at 4:55pm
उमा शंकर मिश्र जी


बहुत ही बेहतरीन विचारों से भरी पंक्तियाँ

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 4, 2012 at 4:43pm

सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु मेरी दिली बधाई स्वीकार करें उमाशंकर मिश्र जी

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 4, 2012 at 3:57pm

प्रश्न खड़ा जीवन मृत्यु का
आर-पार कुछ करने को
लायेंगे बदलाव नया अब
संकल्प ह्रदय में धरने को
परोपकारिता हो गंगा जैसी
जन जन मन में बहने को

वर्तमान  स्थिति को दर्शाते हुए जोश भरा आवाहन, बधाई, आदरणीय उमा शंकर जी 

Comment by Yogi Saraswat on June 4, 2012 at 3:44pm

ये आग अब नहीं बुझने वाली ! बुझेगी , जब सब व्यवस्थित हो जायेगा ! अभी तो चिंगारी निकली है इसे लपटों में बदलने दो ! बेहतरीन रचना शती उमा शंकर मिश्र जी

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