आज बनूँगा मै विद्रोही, अब विद्रोह कराऊँगा|
जो सबके ही समझ में आये, ऐसे गीत सुनाऊँगा||
बहुत हो गया अब न रुकूँगा, मै रोके इन चट्टानों के,
बहुत बुझ चुका अब न बुझूँगा मै पड़कर इन तूफानों मे।
कर के हलाहल-पान आज मै होके अमर दिखा दूँगा,
और बुलबुलों को बाजों से लड़ना आज सिखा दूँगा।
रानी राणा और भगत की सबको रीत बताऊँगा।
आज बनूँगा मै विद्रोही, अब विद्रोह कराऊँगा।।
अब दौलत के व्यापारों पर प्राणों का व्यापार न होगा,
और अमीरों मे धनहीनों का रहना दुश्वार न होगा।
चेहरों पर हाथों को रख कर अब ना जवानी रोएगी।
बस भरने को पेट गैर के बिस्तर पर ना सोएगी।
इनके क्या अधिकार बनें हैं, इनको आज बताऊँगा,
आज बनूँगा मै विद्रोही, अब विद्रोह कराऊँगा।।
विकसेगा हर फूल यहाँ कलियाँ ना रौंदी जायेंगी,
और बूझने से पहले हर दिया स्नेह पा जायेगी।
कुत्ते घूमें मर्सिडीज मे, यह बर्दाश्त नही होगा,
भूखा सोए नन्हा बालक, ऐसा घात नही होगा।
नर्क बन चुके हिन्द देश को अब मै स्वर्ग बनाऊँगा।
आज बनूँगा मै विद्रोही, अब विद्रोह कराऊँगा।।
यहाँ घरों मे अब लक्ष्मी आने पर शोक नही होगा,
तुलसी आँगन मे सुख जाये कू-संयोग नही होगा।
इस दहेज-लोलुप समाज का समूल नाश करना होगा,
हर राधा की डोली को हँस-कर कन्धे चढ़ना होगा |
धनलोभी समाज का सुन लो अब वर्चस्व मिटाऊँगा।
आज बनूँगा मै विद्रोही, अब विद्रोह कराऊँगा।।
कहीं करोड़ो मद्य-पान मे खर्च नही होने दूँगा।
इस गरीब जनता की मेहनत को न व्यर्थ रोने दूँगा|
नही किसानों की मेहनत का गेहूँ सड़ने पायेगा।
और पेट भर बच्चों का कोई भूखा सो जायेगा।
आज भ्रष्ट हो चुके तन्त्र को जड़ से सुनो मिटाऊँगा।
और बनूँगा मै विद्रोही, अब विद्रोह कराऊँगा।।
ध्यान करो हे हिन्द-वासियो! राम-श्याम के वंशज हो,
कीचड़ जैसे भ्रष्ट-तन्त्र मे खिल जाओ तुम पंकज हो।
पृथ्वी, मंगल, नाना, ऊधम के तूफाँ को याद करो,
आओ मेरे साथ स्वयं के सपनों को आबाद करो।
बन शमशीर तुम्हे लड़ना है कैसे आज बताऊँगा।
आज बनूँगा मै विद्रोही, अब विद्रोह कराऊँगा।।
Comment
एक परिपक्व - सार्थक और सशक्त रचना | इसकी गढ़न और शब्दों का प्रवाह मन मोह ले रहा है हार्दिक बधाई और अनंत शुभकामनाये आदरणीय श्री आशीष जी ||
आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी प्रणाम,
आपकी पारखी नजर को प्रणाम। आपने मेरी कमियों को इंगित कर मुझे जो सीखने का मौका दिया है मै बहुत आभारी हूँ। आपने वो बातें बताई जिन्हे आमतौर पर मै गलत कर जाता हूँ लेकिन आगे से ध्यान रखूँगा। कुछ शब्दों को मै जान-बूझकर गलत कर दिया मात्र जिससे मात्राओं की गणना मे त्रुटि न रहे, फिर भी मुझे लग रहा है कि मैने गलत किया था। आगे से ध्यान मे रखूँगा ये बातें।
एक बार फिर से आभारी हूँ।
आपने कविता पसन्द की, बहुत-बहुत धन्यवाद।
आदरणीय प्रधान सम्पादक महोदय जी प्रणाम,
आपने कविता पसन्द किया तो मेरे हर्ष की सीमा न रही। आपका सुझाव मेरे लिए बहुत उपयोगी है।
सादर धन्यवाद
आदरणीय श्री chandan rai जी, आदरणीय श्री PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA ji, आदरणीय श्री SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" ji, evam आदरणीय श्री UMASHANKER MISHRA ji. आप लोगो ने कविता पसन्द किया तो लगा कि मेरा श्रम सार्थक हुआ है।
आप लोगों को सादर धन्यवाद।
आदरणीय सूर्य कुमार बाली जी, कविता पसन्द करने हेतु सादर धन्यवाद।
भाई आशीषजी, आप रचना-कर्म के प्रयास में कई स्तरों पर सफल हुये हैं. अपनी इस रचना की प्रवहमान पक्तियों से उमगती ओजस्विता के लिये मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें. बहुत दिनों के बाद अपने राष्ट्र के विगत के प्रति सम्मान व्यक्त करती और अनगढ़ वर्त्तमान के प्रति आश्वस्ति के भाव जगाती पंक्तियों से लबरेज ऊर्जस्वी रचना पढ़ने को मिली है. पुनः बधाई.
किन्तु, रचना-कर्म के क्रम में, आशीष भाई, आवश्यकता होती है प्रयुक्त शब्दों की अक्षरियों के दुरुस्त होने की, शब्दों के विन्यास को सधे होने की और भाषायी व्याकरण के प्रति संवेदनशील होने की.
मैं आपके रचना-प्रयास के प्रति अपनी शुभेच्छाएँ संप्रेषित करते हुए प्रस्तुत रचना के कुछ शब्दों या कुछ पंक्तियों को इंगित कर रहा हूँ ताकि ’सीखने-सिखाने’ की परम्परा का निर्वहन करते हुए हम रचनाओं के स्तर को संयमित कर सकें.
ऐसी गीत सुनाऊँगा = ऐसे गीत सुनाऊँगा ; अब न रूकुँगा = अब न रुकूँगा ; अब न बुझुँगा = अब न बुझूँगा ; हलाहल = हालाहल ; धनहिनों = धनहीनों ; अधिकार बनें हैं = अधिकार बनते नहीं है ; बूझने = बुझने ; हर दिया स्नेह पा जायेगी = दिया (दीया) पुल्लिंग है ; बर्दास्त = बर्दाश्त ; सुख जाये = सूख जाये ; कू-संयोग = कु-संयोग ; हिन्द-वासियों! = हिन्द-वासियो ! (सम्बोधन सूचक शब्दों में अनुस्वार का प्रयोग नहीं होता, अन्यथा वे शब्द बहुवचन सूचक माने जायेंगे, नकि सम्बोधन सूचक) ; स्वयँ = स्वयं
उपरोक्त अक्षरियों के अथवा शब्द विन्यास को सुधार लिया जाय तो पंक्तियों की मात्रा सम्बन्धी अव्यवस्था स्वयं सहज हो जायेगी.
शब्द और शब्द विन्यास के लिहाज से प्रस्तुत बंद भूरि-भूरि प्रशंसा का पात्र है. हृदय से बधाई स्वीकार करें -
कहीं करोड़ो मद्य-पान मे खर्च नही होने दूँगा।
इस गरीब जनता की मेहनत को न व्यर्थ रोने दूँगा|
नही किसानों की मेहनत का गेहूँ सड़ने पायेगा।
और पेट भर बच्चों का कोई भूखा सो जायेगा।
आज भ्रष्ट हो चुके तन्त्र को जड़ से सुनो मिटाऊँगा।
और बनूँगा मै विद्रोही, अब विद्रोह कराऊँगा।।
वाह-वाह ! बहुत खूब !!
आदरणीया Dr.Prachi Singh दी, आदरणीया Rekha Joshi दी, ewam आदरणीया rajesh kumari दी, आप लोगो ने मेरी कविता पसन्द किया तो लगा कि मेरा श्रम सार्थक हो गया।
आप लोगों को बहुत-बहुत धन्यवाद
आदरणीय अलबेला जी, मेरी रचना को पसन्द कर जो मुझे मान दिया है मै हृदय से आभारी हूँ।
भाई आशीष जी - बहुत सुन्दर और सार्थक कविता रची है जिसके लिए आपको बधाई देता हूँ. केवल एक बात का ध्यान रखें कि सन्देश कहीं नारे का रूप लेकर निरी सपाटबयानी न बन जाये, इसके लिए उत्तम विचारों के साथ साथ सुभाषता एवं प्रौढ़ भाषा का होना भी बहुत ज़रूरी होता है.
वीरताभरी ,ओज पूर्ण कविता पढ़कर खून में उबाल आ गया...
बहुत बहुत बधाई आशीष जी
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