ये सज़ा मिली मुझको तुमसे दिल लगाने की
मिल रही हें बस मुझको ठोकरें ज़माने की
फैसला हे ये मेरा मैं तुम्हें भुला दूंगा
तुमको भी इजाज़त हे मुझको भूल जाने की
ख़ाब अब मुहब्बत के मैं कभी न देखूँगा
ताब ही नहीं मुझमे फिर से ज़ख्म खाने की
रह गयी उदासी हीअब तो मेरे हिस्से में
अब वजह नहीं कोई मेरे मुस्कुराने की
वो चले गए लेकिन हम न कुछ भी कह पाए
दिल में रह गयी हसरत हाले दिल बताने की
Comment
ख़ाब अब मुहब्बत के मैं कभी न देखूँगा
ताब ही नहीं मुझमे फिर से ज़ख्म खाने की
हसरत भाई इस ग़ज़ल के लिये आपको दिली दाद कुबूल हो. बहुत उम्दा अश’आर हैं.
हसरत जी, आपकी ये गज़ल बहुत खूबसूरत है....
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल लिखी है आपने, हसरत साब.
"रह गयी उदासी हीअब तो मेरे हिस्से में
अब वजह नहीं कोई मेरे मुस्कुराने की"
वाह वाह ..क्या कहना. :)
hosla afzai ke liye bahut bahut shukriyah albela ji
वाह वाह ...क्या कहने मोहतरिम जनाब 'हसरत' साहेब........
एक एक लफ्ज़ जैसे नगीने की तरह सलीके से लगाया हुआ........गज़ब ग़ज़ल कही आपने
रह गयी उदासी हीअब तो मेरे हिस्से में
अब वजह नहीं कोई मेरे मुस्कुराने की
_____सारे शे'र ख़ूबसूरत और खूबन्दाज़..
ग़ज़ल मुबारक !
ji bahut bahut shukriyah pradeep ji ..........bas aap ki duaein milti rahein
आदरणीय हसरत साहब जी, सादर
खता उनकी न थी दिल क्यों लगाया आपने
जख्म ज़माने ने दिए इल्जाम उन पे लगाया आपने
नींद आएगी जब तभी तो देखेंगे आप
चले गए वो तेरी अंजुमन से पहले क्यों न मरहम लगाया आपने
बधाई.
ख़ाब अब मुहब्बत के मैं कभी न देखूँगा
ताब ही नहीं मुझमे फिर से ज़ख्म खाने की
रह गयी उदासी हीअब तो मेरे हिस्से में
अब वजह नहीं कोई मेरे मुस्कुराने की
क्या बात है हसरत साब ! बहुत सुन्दर अल्फाज़ और बहुत बढ़िया शे'र ! वाह !
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online