मेरी सखी
कभी चंचल है, कभी है गंभीर
कभी हवा सी है, कभी जैसे नीर
कभी मोती जैसे खानेके वो
कभी चन्दन जैसे महके वो
कभी बदलो की ओट से
चिड़िया बनके चहके वो
कभी नदी की धरा बनके
मेरे बदन पे है वो बही
मैं उसका सखा, वो मेरी सखी...
कभी बड़ बड़ बोले, कभी रहे वो मौन
कभी मुझसे पूछे, मैं उसका कौन
कभी प्रेम भरे वो रिश्ते बनाए
कभी मेहंदी से मेरा नाम सजाये
कभी क्रोध से मुझपे बरसे वो
कभी प्रेम का पानी वो बरसाए
कभी चुम्बक बनके खींचे मुझको
उसकी ये प्यारी बाते सभी
मैं उसका सखा, वो मेरी सखी…
कभी रूठे वो, कभी मुझे मनाये
कभी लिपटे मुझसे, कभी यूँ ही लजाये
कभी गहनों से श्रींगार करे
कभी मेरे नाम का सिन्दूर भरे
कभी प्राण ही ले ले मेरे वो
कभी मेरे लिए वो स्वयं मरे
कभी झूठ मूठ की बातें बनाकर
जोर जोर से है मुझपे हंसी
मैं उसका सखा, वो मेरी सखी...
Comment
ati sundar ranveer ji aapne to prem me sarabor kar diya, badhaai
@rajesh kumari dhanywaad rajesh ji...
@ Rekha Joshi aapka bahut bahut dhanywaad Rekha ji jo aap har baar mujhe protsaahit karti hain... dhanywaad
कभी प्रेम भरे वो रिश्ते बनाए
कभी मेहंदी से मेरा नाम सजाये
कभी क्रोध से मुझपे बरसे वो
कभी प्रेम का पानी वो बरसाए
कभी चुम्बक बनके खींचे मुझको
उसकी ये प्यारी बाते सभी
मैं उसका सखा, वो मेरी सखी…
अति सुंदर भाव आदरनीय रणवीर जी ,बहुत बहुत बधाई
बहुत सुन्दर अहसास प्रेम रस में पगी सुन्दर रचना हेतु बधाई
Dr.Prachi Singh ji dhanywaad...
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