न सूरज पश्चिम से ऊगे , न पूरव में होगा ढलना
इस युग में कैसे संभव हो फिर तेरा और मेरा मिलना
तुम फेसबुक की टाइम लाइन
मैं ऑरकुट बहुत पुराना हूँ
तुम काजू किशमिश के जैसे
मैं तो बस चना का दाना हूँ
तुम अमरीका के डालर सी
मैं भारत का इक आना हूँ
तुम बहर वजन ले मस्त ग़ज़ल
मैं एक बेतुका गाना हूँ
मैं नागफनी की डाली हूँ मुश्किल है फूलों का खिलना
इस युग में कैसे संभव हो फिर तेरा और मेरा मिलना
तुम शुष्मा के जैसी वाचाल
मैं गुमसुम सा मनमोहन हूँ
तुम हो हीरे की चमक लिए
मैं बस कोयले का दोहन हूँ
तुम महंगी काजू कतली सी
मैं मुफ्त पापड़ी सोहन हूँ
तुम मंझी हुई तेंदुलकर हो
मैं नया नवेला रोहन हूँ
तुम होलिवुड की नयी फिल्म मैं हिंदी का नाटक अदना
इस युग में कैसे संभव हो फिर तेरा और मेरा मिलना
तुम डबल साउंड वाली रोकेट
मैं बिन आवाज का पिद्दी बम
तुम रेशम सी जुल्फों वाली
मैं कंघी में चिपका सा ख़म
तुम सेम्पेन की बोतल हो
मैं ठर्रे के पौये में रम
तुम तरुणाई डर्टी पिक्चर
मैं बुझा हुआ सा चीनी कम
तुम स्वर्ण जड़ी इक झुलनी हो, मैं लकड़ी का टूटा झुलना
इस युग में कैसे संभव हो फिर तेरा और मेरा मिलना
तुम बिजली सी चंचल नागिन
मैं सुस्त पड़ा इक अजगर हूँ
तुम माइक्रोसोफ्ट के ऑफिस सी
मैं इक सरकारी दफ्तर हूँ
तुम चटक चांदनी मालों की
मैं भूला सा चिड़ियाघर हूँ
तुम भरी हुई छत की टंकी
मैं सूखी खाली गागर हूँ
यूँ उथल पुथल से सागर की है मुमकिन क्या चन्दा हिलना
इस युग में कैसे संभव हो फिर तेरा और मेरा मिलना
तुम होर्लिक्स वूमन वाला
मैं रामदेव की ठंडाई
तुम भीड़ ग्वालियर मेले की
मैं भुज में पसरी तन्हाई
तुम नींद बिना चिंता वाली
मैं उस्नींदी सी अंगडाई
तुम बहुमत ले आई सत्ता
मैं भोली जनता पछताई
क्या किसी कोण से है संभव यूँ तेरी और मेरी तुलना
इस युग में कैसे संभव हो फिर तेरा और मेरा मिलना
संदीप पटेल "दीप'
Comment
बहुत खूब संदीप ...नए पैकेट में पुराना माल नहीं चलेगा पर पुराने पैकेट में नया माल चलेगा वो कविता मैंने भी पढ़ी हुयी है
और कविता शायद सुनील जोगी जी की है आपकी कविता पढने के बाद एकबार तो लगा था कि ये संदीप जी क्या कर रहे हैं पर आपके यह कहने के बाद
कि// डॉ. जोशी की लिखी रचना "अपना न होगा मेल प्रिये" से प्रेरित ये रचना तब तसल्ली हुयी
आपने भी बहुत धमाकेदार कारण लिख डाले हैं जो कि आसान काम नहीं था बहुत बहुत बधाई
तुम हो पूनम का ताजमहल, मैं काली गुफ़ा अजन्ता की ।
तुम हो वरदान विधाता का, मैं गलती हूँ भगवन्ता की ।
तुम जेट विमान की शोभा हो, मैं बस की ठेलम-ठेल प्रिये
तुम नयी विदेशी मिक्सी हो, मैं पत्थर का सिलबट्टा हूँ ।
तुम ए. के.-४७ जैसी, मैं तो इक देसी कट्टा हूँ ।
तुम चतुर राबडी देवी सी, मैं भोला-भाला लालू हूँ ।
तुम मुक्त शेरनी जंगल की, मैं चिडियाघर का भालू हूँ ।
तुम व्यस्त सोनिया गाँधी सी, मैं वी. पी. सिंह सा खाली हूँ ।
तुम हँसी माधुरी दीक्षित की, मैं पुलिसमैन की गाली हूँ .................सुनील जोगी
आदरणीय संदीप जी, मज़ा आ गया ये रचना पढ़ कर, क्या ज़मीन आसमान के अंतर निकले हैं चुन चुन कर, पर सच में इतने अंतर होने पर तो मिलने का सवाल ही नहीं उठता.... हाहाहाहा ... हार्दिक बधाई हास्य रस की इस बेहद रोचक कविता पर
हास्य व्यंग्य से सुसज्जित प्रवाहयुक्त सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई ....
आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम
डॉ. जोशी की लिखी रचना
"अपना न होगा मेल प्रिये" से प्रेरित ये रचना आपको पसंद आई
इसके लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार
स्नेह अनुज पर यूँ ही बनाये रखिये
तुम डबल साउंड वाली रोकेट
मैं बिन आवाज का पिद्दी बम
तुम रेशम सी जुल्फों वाली
मैं कंघी में चिपका सा ख़म
तुम सेम्पेन की बोतल हो
मैं ठर्रे के पौये में रम
तुम तरुणाई डर्टी पिक्चर
मैं बुझा हुआ सा चीनी कम
तुम स्वर्ण जड़ी इक झुलनी हो, मैं लकड़ी का टूटा झुलना
इस युग में कैसे संभव हो फिर तेरा और मेरा मिलना ----हाहाहा संदीप पटेल जी मेरा तो सर घूम गया पढ़ के क्या भाव क्या शब्द क्या प्रवाह कहीं भी कोई लोच नहीं दो बार पढ़ी वाह मजा आ गया हास्य मनोरंजन से सराबोर मंच पर भीड़ जुटाने वाली कविता बस इससे ज्यादा और क्या कहूँ जरूर अपने लेडीस क्लब में पढूंगी
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