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कवि , उसकी कविता और तुम !

कवि , उसकी कविता  और तुम !
 
हाँ उन कविताओं को भी रचा था उसने उसी वेदना के साथ
जिनपर तुमने तालियाँ नहीं बजायीं
औंर  कई कविताओं को रचकर वह देर तक हँसा था खुद पर
जिन्हें सुनकर तुम झूम उठे थे
जानते हो लिखना और सुनाना दो  अलग अलग विधाएं हैं
और उन सब  पर हावी है रोज़ी रोटी की विधा !
कैसे सुनाता वह समूचे जोश और उत्साह से अपनी कविता
जबकि तुम्हारे  हज़ार फूलों वाले चटख रोशन मंच की  
धवल रेशमी चादर पर तने  चुनौती देते उस माइक के सामने
मंच पर खड़े कवि का पूरा ध्यान था अपनी ज़ुराबों से झांकती उँगलियों पर
वह सोच रहा था जाने आज मिलने वाले पारितोषिक से
कितने दिन सरकेगी गृहस्थी की गाडी !!
वह जिसे सभी कहते लो यह कवि बन गया पत्रकार बन गया
जैसे बन ही नहीं सकता था वह कुछ और साहब या चपरासी या गुंडा मवाली ही
जिसका विवाह पत्र देख वधू पक्ष के रिश्तेदार ने कहा था
आप लोगों को क्या यही मिला कवि लेखक और पत्रकार
वह अक्सर सोचता है  क्यों पढ़ी थीं उसने वह सब किताबें
बोल्शेविक क्रांति  डॉ ज़िवागो  गोर्की  टालस्टाय
और मार्क्स में क्या मिला था उसे
क्या सृजन का वह सूत्र मात्र जो आज बाज़ार में बनकर रह गया है एक उत्पाद भर
महत्वपूर्ण हो गयी है जहां दूकान की साज सज्जा विपणन और पैकेजिंग 
और उसकी फितरत मिज़ाज या नियति कि वह नहीं बन सका 
कविता का कुशल कारोबारी     !!!
 
                                                          - अभिनव अरुण
                                                             {23092012}

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Comment by Abhinav Arun on September 24, 2012 at 3:20pm
हार्दिक आभार श्री राज़ जी रचना पढने और राय व्यक्त करने के लिए | 
Comment by राज़ नवादवी on September 24, 2012 at 1:21pm

काव्य एक प्रसव है और रचनाकार को मातृ धर्म निभाना ही होता है. सुन्दर प्रस्तुति भाई अरुण! 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 24, 2012 at 12:45pm

सिद्धांत और व्यवहार के मध्य लगातार चौड़ी होती खाई को बेहतर स्वर मिला है, बधाई अरुण जी. आपका अतुकांत होना भी चमत्कृत करता है.

शुभेच्छाएँ

Comment by Gul Sarika Thakur on September 23, 2012 at 9:28pm

chintan ke liye uksati huee si is rachana ke liye bahut bahut badhai ... 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 23, 2012 at 7:14pm

 एक मन को झकझोर कर देने वाली प्रस्तुति सच में कविता मनुष्य के ह्रदय से होकर निकलती है 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 23, 2012 at 6:38pm

//जानते हो लिखना और सुनाना दो अलग अलग विधाएं हैं
और उन सब पर हावी है रोज़ी रोटी की विधा !//

सुन्दर और सटीक बात, सही है बगैर रोटी विधा जाने, कोई विधा काम नहीं आती, बहुत ही सुन्दर रचना, बधाई स्वीकार करें आदरणीय अरुण अभिनव जी ||

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 23, 2012 at 3:52pm

सत्य यही है भाई अभिनव अरुण जी, वियोगी होता है कवि,

जो बाहर से सुन्दर दिखेहै वही बिके है, कैसी हो उंदर की छवि
 अच्छी अभियक्ति,बधाई 

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 23, 2012 at 1:46pm

कटु सत्य की सुन्दर अभिव्यक्ति आ. अरुण कुमार जी

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