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पर्वो में सिमट गयी यादे
बलिदान शहीदों के सारे
हो गए कैद किताबो में
भारत माता के रखवारे
जिस देश की खातिर खून दिया , वो देश नहीं अब पहचाने
....जो रहे समर से दूर मर्म ..............
ati sundar shabd aur utne hi khoobsurat bhaav sharma ji badhai
बहुत सुन्दर भाव सर जी
इस सुन्दर संवेदनाओं से सजी रचना हेतु साधुवाद आपको
भारत माता के वीर सपूतों के बलिदानों के प्रति संवेदन हीन होती हुई इंसानियत हेतु रोष प्रकट करती हुई इस रचना को नमन बहुत अच्छा लिखा है आपने ह्रदय से बधाई आपको अजय शर्मा जी
आपकी इस रचना से निस्सृत राष्ट्र-पूतों की हो रही अवहेलना को हम एक पाठक के तौर पर भरपूर संवेदना के साथ स्वीकार कर पाये. इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, अजयजी.
औरो की खातिर मर जाना
जिनको केवल इक खेल लगे
उनके ही त्याग समर्पण का
कितना सस्ता अब मोल लगे
bahut sundar rachna ..bahut sundar bhaw abhiyakti badhai ..
जगते ही जिनको भोर मिली
संघर्ष निशा का क्या जाने
जो रहे समर से दूर
मर्म इक बलिदानी का क्या जाने ...........सच कहा अजय जी
बहुत सुन्दर सम्प्रेषण .....बधाई
गहरी सोंच में डूब गया, भाई अजय शर्मा बात दिल को झकझोर जो गयी-
छले गये जो अपनों से ....जो रहे समर से दूर ..बहुत मार्मिक रचना ...बधाई अजयशर्मा
जी
प्रिय अजय जी बहुत ही उम्दा रचना है
मेरे हाथों के रोएँ खड़े हो गये
जगते ही जिनको भोर मिली
संघर्ष निशा का क्या जाने
जो रहे समर से दूर
मर्म इक बलिदानी का क्या जाने ...............
बहुत बहुत बधाई
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