(1)
(तालिबानी फरमान न मानने वाली छात्रा बिटिया मलाला को समर्पित)
सुंदरी सवैया
उगती जब नागफनी दिल में, मरुभूमि बबूल समूल सँभाला ।
बरसों बरसात नहीं पहुँची, धरती जलती अति दाहक ज्वाला ।
उठती जब गर्म हवा तल से, दस मंजिल हो भरमात कराला ।
पढ़ती तलिबान प्रशासन में, डरती लड़की नहीं ढीठ मराला ।।
(2)
मत्तगयन्द सवैया
बाहर की तनु सुन्दरता मनभावन रूप दिखे मतवाला ।
साज सिँगार करे सगरो छल रूप धरे उजला पट-काला ।
मीठ विनीत बनावट की पर दंभ भरी बतिया मन काला ।
दूध दिखे मुख रूप सजे पर घोर भरा घट अन्दर हाला ।।
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय अजय जी ||
wah wah wah wah i have no words to comment ,,, really really worth praising
आभार आदरणीय बागी जी-
दोनों रचनाएँ बहुत ही उम्दा हैं, मलाला शीघ्र स्वस्थ हो , हम सब की दुआ है, क्योंकि ऐसी बेटियां रोज रोज पैदा नहीं होतीं | बधाई स्वीकार करें आदरणीय रविकर जी |
बहुत बहुत आभार
आदरेया राजेश दीदी ||
बहुत बहुत आभार
आदरेया राजेश दीदी ||
बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ जी ||
आपका हृदय से स्वागत है, आदरणीय रविकरजी. इन सुन्दर भावपगे शिल्पशुद्ध छंदों के लिये साधुवाद. आपको इन छंदों पर कहते हुए देख कर मन फूला नहीं समा रहा है. दोनों सवैये अलग-अलग विषयों और आयामों के साथ हैं लेकिन दोनों रचनाओं की तासीर, आदरणीय, मन-हृदय को मनोहारी रस से अभिसिंचित कर रही है. विशेषकर ’विषकुम्भकम् पयोमुखम्’ ..
बधाई-बधाई-बधाई.. .
बहुत ही सुन्दर छंद रचे है रविकर जी और आपके ब्लॉग में आपके प्रकाशित होने वाले खंड काव्य के अंश भी पढ़े हैं जो लाजबाब हैं हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आपको
स्वागत है आदरणीय रविकर जी,
रचा गया खंडकाव्य प्रकाशित करने की योजना निःसंकोच बनाएँ ! अशुद्धियों के भय की कोई बात नहीं आदरणीय क्योंकि एक असाधारण विद्वान होने के साथ-साथ आप अपने ओबीओ के सम्मानित सदस्य भी हैं यहाँ पर आपको अशुद्धियों के निराकरण हेतु वांछित सहयोग अवश्य मिलेगा ! सादर
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