लघुकथा : सुहागन
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लघु कथा की आत्मा तक पहुचने हेतु आपका बहुत बहुत आभार शालिनी कौशिक जी |
सर्वप्रथम आदरणीय गणेश जी बागी आपका बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने भोजपुरी में लिखी रचना को हिंदी में प्रस्तुत किया
पहले हम सुना करते थे कि कुछ प्रदेशों में बाहुबल से अच्छे होनहार लड़कों का अपहरण कर जबरदस्ती शादी करवा दिया जाता था
इस घटना को हमारा कल्चर अच्छी तरह समझ सकता है एक बार विवाह होने के बाद,चाहे जबरदस्ती हो या मन से हो या ना हो
पर हमारी संस्कृति इसे मान्यता प्रदान कर देती है इसी लिए हम भी स्वीकार कर लेते है
आपने इस छोटी सी कथा में बहुत ही बड़ी एवं दर्दनाक मंजर को प्रस्तुत किया है
अंतिम लाईन ने तो ह्रदय को झकझोर दिया है
ये रचना उन बाहुबलियों के लिए अच्छा सन्देश है कि देखो तुम्हारी कारगुजारी से कैसे दो मासूम
जिंदगी तबाह हो गई बंद करो ये गोरख काम
हार्दिक बधाई ......आ.गणेश जी बागी
बलात रिश्ता वह भी दबाव में कराने कि घटनाए आज भी बहुत हो रही है | वास्तव में तो बलात कराया हुआ सम्बन्ध रिश्ता ही नहीं है, क्योंकि वह निभाता ही नहीं है | और यह धार्मिक द्रष्टि से भी अपराध है | इस भावपूर्ण लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई भाई श्री गणेश जी बागी जी
बहुत भावपूर्ण लघु कथा है और सही कहा सुमन ने बन्दूक के दम पर वे शादी करवा सकते थे तो गोद भी भरवा सकते थे .ये तो unhe पता ही होना चाहिए की रिश्ते दिल से जुड़ते हैं न की बन्दूक से
आह !! क्या कहूँ सौरभ भईया, कुछ लोगो की नासमझी, किसी की जिन्दगी को कैसे तहस नहस करती है यह आपके द्वारा बताई गई घटना से स्पष्ट है, मेरे द्वारा प्रस्तुत लघु कथा भी सत्य घटना से प्रेरित है, इस लघु कथा को प्रस्तुत करते समय मैं किस मानसिक स्थिति से गुजरा हूँ यह मैं ही जानता हूँ |
उत्साहवर्धन हेतु आपका आभार |
आदरणीया सीमा जी, क्या कहा जाय, उन माता पिता को, जो अपने बच्चों के साथ इतना बड़ा रिश्क लेते हैं, अपने ही हाथों अपने औलाद की जिन्दगी दांव पर लगा देतें हैं | इस कथा को पसंद करने के लिए आभार आपका |
लघु कथा को पसंद करने के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी, दरअसल भोजपुरी वर्जन में मुझे लगा की जो मैं लघु कथा के माध्यम से कहना चाहता था वो गैर भोजपुरी पाठकों तक नहीं पहुँच पा रहा है, इसलिए हिंदी रूपांतरण करना पड़ा |
गणेश भाई, इस कथा पर भोजपुरी में मैं अपनी बात साझा कर चुका हूँ. हृदयद्रावक घटना का उल्लेख है इस कथा में. मैं ऐसी ही एक घटना साझा कर रहा हूँ.
कक्षा पाँच-छः में हम कैसे होते हैं ! तब मेरा एक मित्र हुआ करता था. दिल का खुला, भोला-भाला, गोरा-चिट्टा, डबर-डबर आँखों हर अनजाने को मानों पीता हुआ ! हमारी पटती थी. पिताजी का ट्रांस्फरेबल जॉब. हम जहाँ-तहाँ पहुँचते रहे. कॉमन फ्रेंड के जरिये उस वक़्त के कइयों की खबर बहुत दिनों तक बनी रही. हमसभी के पिता चूँकि एक ही संस्था से थे सो एक दो का साथ भले शिष्टाचार के दायरे में हो आज भी बना हुआ है. लेकिन उस मित्र का साथ छूट गया. अलबत्ता मेरी स्मृति का वो हिस्सा बना रहा. करीब सत्ताइस-अट्ठाइस सालों बाद एक से मेरी अचानक मुलाकात हुई. हम दोनों देर रात गये तक भूले-बिसरे कइयों को करते रहे. फिर हमने ’उस’ के बारे पूछा.
और, जो कुछा सुना गणेश भाई, मेरे रोंगटे खड़े हो गये. उसका भी अपहरण हुआ था ! ’विवाह’ के लिये ! तब वह पटना के इंजिनियरिंग कॉलेज में था और छुट्टियों में गाँव गया हुआ था. इक्कीस-बाइस साल का वो था तब. तीन-चार महीने तो वह यों हीं बावला हुआ घूमता रहा, फिर वो सिमरिया घाट पर गंगा के अनगढ़ बहाव में गुम गया. एक संभावना का निर्दयी पटाक्षेप हो गया. आज भी उसकी वो भोली सूरत कौंध जाती है.
आपकी इस कथा ने बहुत कुछ सुलगा दिया है, गणेश भाई.
मुझे तो इस विषय में कुछ पता नहीं था पिछले दिनों टी वी पर आने वाले एक सीरियल से इस बारे में जानकारी मिली थी तब भी विश्वास नहीं कर सकी थी .....सच में इस प्रकार के काण्ड कर के माता-पिता अपनी बेटी का जीवन ही बर्बाद करते हैं
ओह्ह भगवान् !!!बहुत ही झकझोर कर दिया इस कहानी ने आपसी रंजिश में या कोई भी कारण रहा हो दो जिंदगी बर्बाद कर दी इस के खिलाफ प्रशासन को कठोर नियम बनाने की जरूरत है आदरणीय गणेश जी इस कथा का हिंदी रूपांतर करने के लिए बहुत बहुत आभार
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