शिथिल मनस पे वार कर, जो कर सके तो कर अभी..
प्रहार बार-बार कर, जो कर सके तो कर अभी.. !
अजस्र श्रोत-विन्दु था मनस कभी बहार का
यही हृदय उदाहरण व पुंज था दुलार का
प्रवाह किंतु रुद्ध अब, विदीर्ण-त्रस्त स्वर लगें
सनातनी विचार के न तथ्य ही प्रखर लगें
मग़र किसी को दोष क्यों, हमीं युगों से सो रहे
असह्य फिर प्रहार कर, जो कर सके तो कर अभी.. ..
कभी यही समाज था प्रबल, कि लोग शांत थे
विचारवान थे सभी, सुसभ्य गाँव-प्रांत थे
मग़र चली वो आँधियाँ सचेत तक बहक गये
रवां जहाँ सुतंत्र था, विचार तक दहक गये
समाज क्रुद्ध, राज भ्रष्ट, देख लोग पस्त हैं
न पार्श्व से पुकार कर, जो कर सके तो कर अभी.. ..
सुरम्य घाटियों से देख जा रही प्रभा किधर
जघन्य पाप के विरुद्ध क्या करे दुआ असर
विकल पड़ा है व्यक्ति यों, कि त्राण है, न राह है
विचारशील के लिये न वृत्ति का प्रवाह है
झिंझोर दें, हुँकार कर.. . तमस प्रभाव दे मिटा
हुँकार जोरदार कर, जो कर सके तो कर अभी.. ..
हृदय सन्देह लबलबा तभी लचर लिहाज़ हैं
न दीखते उपाय ही, अहं सने रिवाज़ हैं
विदग्ध राष्ट्र-भावना तभी प्रसूत भाव से
अमर्त्य वीर थे सदा प्रसिद्ध हम स्वभाव से
विद्रोह-ज्वाल से भरे विचार रौद्र झोंक दे
प्रघात बेशुमार कर, जो कर सके तो कर अभी.. ..
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--सौरभ
Comment
कभी यही समाज था प्रबल, कि लोग शांत थे
विचारवान थे सभी, सुसभ्य गाँव-प्रांत थे
मग़र चली वो आँधियाँ सचेत तक बहक गये
रवां जहाँ सुतंत्र था, विचार तक दहक गये
समाज क्रुद्ध, राज भ्रष्ट, देख लोग पस्त हैं
न पार्श्व से पुकार कर, जो कर सके तो कर अभी.. ..
आदरणीय गुरुदेव, सादर
मग़र किसी को दोष क्यों, हमीं युगों से सो रहे
असह्य फिर प्रहार कर, जो कर सके तो कर अभी.. ..
झिंझोर दें, हुँकार कर.. . तमस प्रभाव दे मिटा
हुँकार जोरदार कर, जो कर सके तो कर अभी.. ..
दिल को जगाने वाली ओजपूर्ण कविता के लिए अदरणीय सौरभ जी बहुत बधाई ।
सौरभ जी प्रणाम....
बहुत भावपूर्ण रचना के लिए बधाई...
फूल सिंह
ऐसा लगता है जैसे कोई प्रयाण गीत गा रहा है ' हिमाद्रि तुंग श्रृंग से....' अनायास यह कविता मन में कौंध गई, सादर
आदरणीय सौरभ जी,
सादर नमन
अद्भुत जोश भरा आह्वान ....
हर शब्द में अंगार है ...
उन्नत सांस्कृतिक दार्शनिक सामजिक इतिहास था हमारा, पथभ्रमित हो कहाँ आ गए हम...जहां मनस चेतन सुप्त पड़े हैं...
उन्हें जागृत करने के लिए ....
शिथिल मनस पे वार कर, जो कर सके तो कर अभी..
प्रहार बार-बार कर, जो कर सके तो कर अभी.. !
बेहद सार्थक गीत. वक़्त की माँग ऐसा ही जोश ज़ुनून जज्बा है... इस रचना की भावभूमि को नमन. सादर.
हार्दिक बधाई स्वीकारें इस बेमिसाल गीत के लिए.
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