मच्छर
इस युग के दो महान प्राणी
जिनकी महिमा सबने जानी
लेता सब कुछ न कुछ देता
एक मच्छर दूसरा है नेता
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गली नुक्कड़ हो या चौबारा
हर जगह है इनकी पौ बारा
जिनके बूते जग में हैं पलते
अवसर पा शरीर में डंक भरते
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सूरत सीरत पे इनकी न जाओ
लाख बचो इनसे पर बच न पाओ
भुनभुना के मीठा संगीत सुनाते
चुपके से जनता का खून पी जाते
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जनम लेते तब लगते ये मर गिल्ले
पीते खून फूटते तब इनके किल्ले
सफ़ेद रंग फिर काला अंत में लाल
भूख गरीबी महंगाई से जनता बे हाल
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कैंसर मलेरिया डेंगू कई रोगों के कारक
बच न सका कोई भैया हैं ये बड़े मारक
बतलाता तुमको उपाय चाहो अगर जीना
काटते मर जायेंगे पड़ेगा तुमको जहर पीना
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निर्णय तुमको करना है जीना है या मरना है
आगे बढ़ संघर्ष करो कायरों से क्या डरना है
उज्जवल भविष्य हो भारत का कर्तव्य हमारा है
पियो गरल शिव बनो या शव निर्णय तुम्हारा है.
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Comment
बहुत बढ़िया आदरणीय ।।
हल्ला कर, मरहम मले, पहले लेता पोट ।
यह डंके की चोट पर, पहुंचा जाता चोट ।
पहुंचा जाता चोट, चूसता खून प्यार से ।
एक घरी की खाज, तड़पता व्यक्ति वार से ।
अक्सरहाँ दे दर्द, जहर तन भरे निठल्ला ।
रविकर हिट से मार, बंद हो जाए हल्ला ।।
मच्छर और नेता पे इससे बेहतर और कुछ हो ही नहीं सकता , बहुत बधाई आपको।
सुन्दर व्यंग रचना के लिए हार्दिक बधाई श्री प्रदीप कुमार कुशवाहा जी
आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी, बहुत रोचक सोच मच्छर और नेता में समानता..हार्दिक बधाई इस रचना के लिए
प्रदीप जी नमस्कार.....
बहुत ही सुंदर व्यंगात्मक, तुलनात्मक रचना....बधाई....
फूल सिंह
बहुत खूब तुलना की है सुंदर छंद हैं ।
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