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सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय रत्ती साहब , स्नेह बनाये रहे ।
"ईमान" सच में इंसान में ही तो वही सच्चा इंसान होता है,,,,और उसके साथ कोई गलत सौदा नहीं कर सकता...बहुत अच्छी रचना,,,
आदरणीय बागी जी बहुत सुन्दर प्रेरणादाई लघु कथा सोचने पर विवश करती हुयी हम समाज के किस तबके के बारे में गरीबों के बारे में क्या क्या सोचते हैं और होता है कुछ और ईमान भरा है मजबूरियां हैं पर कोयले के खान में हीरे भी हैं
नमस्कार बागी जी ..
बहुत-2 बधाई आपको .. सार्थक सन्देश के साथ सुंदर कथा / सच तो यही है ईमानदारी हमेशा समाज द्वारा शोषित वर्ग ही अपनी गठरी में संभाल कर रखता है /
आपकी कथा के जीवंत संवाद मीना कुमारी और वहीदा रहमान के ओल्ड क्लासिक फिल्मो की याद ताजा कर गई /
बहुत अच्छी प्रभाव पूर्ण लघु कथा किसी के धंदे से या बाहरी रख रखाव से किसी के ईमान को नहीं आँका जा सकता जिस्म बेचना उसकी मजबूरी है पर ईमान उसकी आत्मा में बसा है बहुत ही बढ़िया सीख देती कहानी है बहुत खूब बधाई आपको
लघुकथा पसंद आई बागी जी, धर्मेन्द्र 'सज्जन' जी वाली बात को मैं भी दोहराना चाहूँगा, विषय विविधता लघुकथा का महत्वपूर्ण पहलू है।
लाला, लैला से हार गया....
जब से नमक सस्ते ढेलों से सुगमतासे बहने वाले रुप( फ़्री फ़्लो ) में महंगे पैकेटों में आने लगा है तब से अपने स्वभाव के अनुसार कहीं रुकता ही नहीं है, ना विचार में न शरीर में और ना हई चरित्र में...
अब तो लाला तेल नहीं तेल की धार देखें........ FDI आ रहा है.....
एक सुन्दर कथा ,
सादर.
बहुत सुन्दर कथा सर जी बहुत बहुत बधाई इस संवाद हेतु
लैला ने जो कहा क्या उसके लिए काफी था ???
चोर लाला के लिए
कम शब्दों मे गहरा असर छोडती उत्तम रचना के लिए अदरणीय गणेश जी को बधाई ।
"मैं जिस्म का सौदा जरुर करती हूँ, लाला.. . ईमान का नहीं" इस इक लाईन ने पुरे व्यापारी जगत की ईमानदारी सामने लाकर रख दी. दूसरा सन्देश मर्म भरा यह है की धंधा चाहे जिस्म्फरोसी का हो ईमानदारी का महत्व अपनी जगह है. बहुत सार्थक कथा .साधुवाद.
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