For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रयाग में कुंभ (मत्तगयंद सवैया) // -सौरभ

बालक-वृंद सुनैं, यह भारत-भूमि सदा सुख-साध भरी है
पावन चार नदी तट हैं, इतिहास कहे छलकी ’गगरी’ है
नासिक औ हरिद्वार-उजैन क घाट प बूँद ’अमी’ बिखरी है
धाम प्रयाग विशेष सदा जहँ धर्म-सुकर्म ध्वजा फहरी है

पुण्यधरा तपभूमि महान जो बारह साल प कुंभ सजावैं
तीनहुँ कर्म व धर्म निछावर पुण्य-प्रभा यशगान सुनावैं
गंग क संग मिले जमुना निज धार सरस्वति गुप्त बहावैं
तीर्थ मँ तीर्थ प्रयाग सुतीर्थ, सुक्षेत्र क तथ्य पुरानहुँ गावैं

माघ क मास जुटान बने, जन मुग्ध दिखैं, मनभाव रसे हैं
माघ व पूस मँ जोग जगा, सुघड़ी जुटते, निकले घर से हैं
संगम के तट कल्प-प्रवास क भाव से तृप्त, समान कसे हैं
तंबु-कनात व बर्तन-बासन साज-सजे, बहु गाँव बसे हैं

पाँच नहान करैं तिथि वार, यही उनके भव-जाल छुड़ावैं
मौनि-अमावस की महिमा अति उच्च सदा गणना समुझावैं 
मास-प्रवास मँ साध रहे सिकता पर जीवन-जाल सँधावैं
लोक समाज अलौकिक है, इनके तप को हम शीष नवावैं

***********

सौरभ

***********

[ गगरी - अमृत-कुंभ ; अमी - अमिय, अमृत ; तीनहुँ कर्म - तीनों कर्म यानि सुकर्म, अकर्म और विकर्म ; धर्म - कर्तव्य, दायित्व ; जुटान - जमावड़ा ; जन - लोग-बाग़ ; माघ व पूस - मार्गशीष और पौष का मास ; जोग जगा - संयोग हुआ ; सुघड़ी जुटते - सही समय आते ही ; कल्प-प्रवास - संगम के तट पर एक माह के प्रवास करने की प्रथा ; समान कसे हैं - सामान आदि की व्यवस्था करना ; बर्तन-बासन - सारे बर्तन, चूल्हे-चौके और सारा असबाब ; बहु गाँव - कई गाँव ; पाँच नहान - पाँच मुख्य स्नान जो कुंभ में सर्वाधिक महत्व के माने जाते हैं ; तिथि वार - तिथि के अनुसार ; भव-जाल - सांसारिक बंधन ; मौनि अमावस - मौनी अमावस्या की तिथि जो सभी स्नानों में सबसे विशिष्ट होती है ; गणना समुझावैं - पंचाग समझाते हैं ; सिकता - बालुका राशि, रेत ; जीवन-जाल - नये तरह की दिनचर्या (जीवन) को जीना ]

उपरोक्त सवैया का सस्वर पाठ सुनें.

Views: 1449

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 13, 2013 at 3:57pm

आदरणीय गुरुदेव सौरभ जी 

सादर अभिवादन 

स्वाद बहुत पहले ही ले लिया था . मिठास इतनी ज्यादा है की होंठ चिपके हैं. वर्णन कैसे करूँ. बधाई.

Comment by Anwesha Anjushree on January 10, 2013 at 6:58pm

behad sunder chhand....naman aapko

Comment by Ashok Kumar Raktale on January 5, 2013 at 12:47pm

आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, आपकी स्वर लहरियों के साथ छंद का आनंद द्विगुणित हो गया कुछ कुछ हमारे इधर गाये जाने वाली श्री हनुमान चालीसा के गायन कि लय का पुट मिल रहा था.प्रथम सवैया को जब आपने पुनः स्वर दिया तो मन हुआ इसे यूँ ही लगातार रखा जाए. बहुत मजा आया.  सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 4, 2013 at 11:05pm

भाई राजेशजी, क्या हुआ कि आप साउण्ड-फाइल ऑन नहीं कर पाये ? रचना का वाचन आपको अच्छा लगा यह मेरे लिए संतोष की बात तो है ही, लेकिन साउण्ड-फाइल को नत्थी करने का औचित्य ही उसका सुना जाना है. आप इस फाइल को सुन कर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य साझा करें. .. सधन्यवाद.

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 4, 2013 at 11:00pm

सीमाजी, आपको मेरा सवैया पाठ आपको रोचक लगा यह मेरे लिए भी संतोष का कारण है. वस्तुतः आकाशवाणी इलाहाबाद वालों का यह निवेदन था कि जबतक यह पाठ ब्रॉडकास्ट न हो जाय इस साउण्ड-फ़ाइल को साझा न करूँ. यही कारण है कि इस फ़ाइल को साझा करने में विलम्ब हुआ है.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 4, 2013 at 10:55pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसादजी, आपको मेरा सवैया पाठ करना अच्छा लगा यह जान कर मैं भी अत्यंत प्रसन्न हूँ. सहयोग बना रहे.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 4, 2013 at 10:52pm

डॉ.प्राची, हार्दिक धन्यवाद कि मेरा सवैया पाठ उपयुक्त लगा. आपका आभारी हूँ. इस साउण्ड-फाइल के अपलोड होने में भाई गणेशजी का महत्वपूर्ण योगदान है.

सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on January 4, 2013 at 6:45pm

मत्‍तगयंद सवैया मत्‍त कर गई आदरणीय ।  आपके स्‍वर में सुन तो नहीं पाया हूं लेकिन इसे पढ़कर इससे उठते नाद को जरूर महसूस कर सकता हूं ।  स्‍वयं बैठकर कई-कई बार पढ़ा और हरेक बलाघात पर झूमता रहा । प्रत्‍येक शब्‍द का प्रथम अक्षर उस प्रभाव को समेटे हुए है जो मुझे झूमने पर मजबूर कर देती है । सादर

Comment by seema agrawal on January 4, 2013 at 3:44pm

वाह सौरभ जी कमाल ही कर दिया आपने तो सवैयों  का मज़ा दुगना हो गया ...यूं भी सस्वर पाठ रोचक हो जाता है फिर यदि कवि स्वयं  पाठ करे तो आनंद दुगना ..उस पर भी जब सौरभ जी पढ़ें तो मस्ती का कोई ओर-छोर ही नहीं रहता.. फुलकी के स्वाद के बाद बाद आज कुम्भ की भी  सैर हो गई |

आपने सही अनुमान लगाया है मैंने हरिद्वार कुभ की सैर की है पर बहुत छोटे में .....ज्यादा याद नहीं है पर हर तरफ बिखरे रंग अभी भी याद हैं 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 4, 2013 at 3:07pm
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, आपके श्रीमुख से मधुर छंद गीत सुनकर गद गद हो गया, 
जी करता है कुम्भ तक प्रातः रोज सुनता रहू और कुम्भ न जा पाने पर भी अपने को धन्य समझु ।
आपका मधुर वाणी से मुग्ध हो, कवी सम्मेल्लन सा आनंद आ गया, आपका तहे दिल से आभार, साधुवाद ।-
 
पुण्यधरा  तपभूमि के यशगान जो स्वरबद्ध सुनावे 
हमही लगा जैसे हम कुम्भ में छंद बद्ध रहे नहावें ।
कुम्भ दर्शन नहीं भाग्य माहि, अहोभाग्य जो मौका पावे 
बहुत कृपा किन्ह श्रीसौरभ जी,पुण्य-प्रभा यशगान सुनावैं 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Jul 12
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service