आधा सुन के खूब सुनाये
अधजल गगरी छलकत जाए
धैर्य नहीं इक पल भी रखना
चाहे मूरख सब कुछ चखना
क्या है मीठा क्या है खारा
नहीं भा रहा उसे परखना
अंतर में रख घोर अन्धेरा
बाहर बाहर दीप जलाए....................
सुने नहीं वो बात बड़ों की
आंके बस औकात बड़ों की
दिन को देख के नहीं सोचता
गुजरे कैसे रात बड़ों की
बिन अनुभव के बड़ा न कोई
कौन भला इसको समझाए ........................
जो चाहूँ मैं अभी बनालूं
कच्ची माटी ऐसे ढालूं
लेकिन जो अधपक्की हो गयी
उसको कैसे कहो सम्हालूं
इससे न कुछ भी है बनना
कहे कुम्हार खडा असहाय ...................................
सीख नहीं लेना जब भाता
मन में दंभ तभी भर जाता
क्या है अच्छी और बुरी क्या
कुछ भी ग्रहण नहीं कर पाता
नहीं गुरु का कोई भी चेला
गुरु बिन ज्ञान कहाँ से आये .........................................
संदीप पटेल "दीप"
Comment
आदरणीय अशोक सर जी सादर प्रणाम
सही कहा आपने
मैं स्वयं भी इस कार्य में लग जाता हूँ कभी कभी
और यहीं से इसका रचना का जन्म हुआ है
पहले स्वयं अपनी गागर भर लो
फिर दूसरों की गागर पर नज़र डालो
ताकि आपको फिर सर्मिंदगी न हो के हे प्रभु ये क्या हो गया
जल्दबाजी में अक्सर ऐसा हो जाता है
और उसे स्वीकार कर तुरंत ही सुधार लेना ठीक है
किन्तु कभी कभी बिगड़ी बात नहीं बनती है
जैसे फटा हुआ दूध
किसी काम का नहीं रह जाता
आपका बहुत बहुत शुक्रिया इस रचना को सराहने हेतु
अब देखिये मेरी जल्दबाजी के चलते
आदरणीय गुरुदेव ने बताया भी है के गलती कहाँ हुई है
आदरणीय संदीप जी वाह! क्या ही सुन्दर प्रेरणादायी रचना लिखी है. आधी समझ कर पूरी समझाने की आदत बेडा गर्क कर देती है. इसे अवश्य समझना चाहिए.मगर होता इसके विपरीत ही है इसलिए कई बार नदी और समुद्र के उदाहरण दिये जाते रहे हैं. बधाई स्वीकारें.
आदरणीय विजय निकोर सर जी , आदरणीय राजेश झा जी , आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी , आदरणीया डॉ प्राची जी , आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी, आदरणीय लक्षमण सर जी आप सभी को सादर प्रणाम ....
आपको मेरा ये लेखन का प्रयास पसंद आया और आप सभी से बधाई मिली इसके लिए मैं आप सभी का ह्रदय से आभारी हूँ
ये स्नेह मुझ पर यूँ ही बनाये रखिये
आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी उसमे जल्द ही सुधार करूँगा आशीर्वाद यूँ बना रहे इस चेले पर
सादर
सुंदर लय का निर्वहन किया है, बहुत बधाई !
सोच के आकाश में उड़ता रचनाशील पंछी सच्चाई परखता कितना सुन्दर सृजन करता है यह कविता उसका एक सुन्दर उदाहरण है, इस कविता के लिए बहुत बहुत बधाई
भाई संदीपजी, मंच पर आपकी अत्यंत सधी हुई उपस्थिति, आपका सुगढ़ प्रयास, आपकी रचनाओं के तथ्य और शिल्प में लगातार होती हुई कसावट, आपका शिष्ट व्यवहार और साहित्यिक आचरण, सारा कुछ किसी भी प्रयासरत रचनाकार के लिए अनुकरणीय है.
अब आपके स्पष्ट उद्गार साहित्याकाश ही नहीं किसी क्षेत्राकाश में ानुशासनीन और स्वच्छंद उड़ते कर्मियों को जिस हिसाब से आपकी रचना द्वारा नसीहत मिली है वह आपके उत्तरदायित्व भान का परिचय करा रहा है. इस हेतु आप हार्दिक बधाई के पात्र हैं.
शिल्प के क्रम में आपने थोड़ा और समय दिया होता. समझाये के साथ असहाय का साथ न होता.
आपकी इस रचना के लिए मैं आपको पुनः हृदय से बधाई देता हूँ.
वाह संदीप जी, सुंदर लय का निर्वहन किया है, बहुत बधाई
संदीप जी,
बहुत अच्छी सीख दी है इस कविता के माध्यम।
भाव भी पसन्द आए।
विजय निकोर
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