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आओ दिल का दीया जला लो

सद्भावों की थोड़ी खूशबू

सरगम की आवाज बची है

आओ दिल का दीया जला लो

मुट्ठी में थोड़ी राख बची है

नई उमर के गर्म खून से

उठी हुई कुछ भाप बची है

श्रद्धा के कुछ बूंद जमे से

बचपन की एक शाख बची है

आओ दिल का.................

तेरी आरजू मेरी शिकायत

की मीठी तकरार बची है

जग से जाने के कुछ लम्‍हें

जीवन की सौगात बची है

आओ दिल का.................

घुटी व्‍यथा जो तुझमें,मुझमें

उसकी कुछ आवाज बची है

भींगे मन के कुछ पन्‍नों पर

यादों की झनकार बची है

आओ दिल का.................

कहो अलविदा तुम ना ऐसे

अभी तो थोड़ी दाद बची है

उमस धूल और सिहरन में भी

आशा की कुछ गाद बची है

आओ दिल का.................

राजेश कुमार झा

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 560

Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 25, 2013 at 9:57pm

 बहुत सुन्दर गीत आदरणीय राजेश झा जी , सिर्फ कुछ एक जगह मात्रा गणना कम ज्यादा है, जहां प्रवाह बाधित लग रहा है, मेरा सुझाव मात्र है की आप इन दिए गए परिवर्तनों से यदि सहमत हों तो इन्हें रचना में अपना के देखें या इसी अनुसार कुछ और बदलाव करें, ताकि यह बहुत ही खूबसूरत नवगीत शिल्पानुरूप निर्दोष हो सके. इससे हर पंक्ति की मात्रा १६-१६ हो जाएगी, और गेयता निर्बाध रहेगी ( सुझाव मात्र )

 

 सद्भावों की थोड़ी खूशबू.....................खुशबू 

सरगम की आवाज बची है

आओ दिल का दीया जला लो..............दीया को दीप कर लें 

मुट्ठी में थोड़ी राख बची है..................थोड़ी को कुछ कर लें

 

नई उमर के गर्म खून से

उठी हुई कुछ भाप बची है

श्रद्धा के कुछ बूंद जमे से

बचपन की एक शाख बची है...............एक को इक कर लें 

 

आओ दिल का.................

 

तेरी आरजू मेरी शिकायत...............तेरे सपनों मेरे शिकवों 

की मीठी तकरार बची है

जग से जाने के कुछ लम्‍हें

जीवन की सौगात बची है

 

आओ दिल का.................

 

घुटी व्‍यथा जो तुझमें,मुझमें

उसकी कुछ आवाज बची है

भींगे मन के कुछ पन्‍नों पर

यादों की झनकार बची है

 

आओ दिल का.................

 

कहो अलविदा तुम ना ऐसे

अभी तो थोड़ी दाद बची है…………….तो थोड़ी के स्थान पर ज़रा सी करे.

उमस धूल और सिहरन में भी............और को औ लिखें

आशा की कुछ गाद बची है

 

आओ दिल का.................

 

सदकामनाएं , सादर.

डॉ. प्राची 

Comment by Yogi Saraswat on January 25, 2013 at 2:39pm

तेरी आरजू मेरी शिकायत

की मीठी तकरार बची है

जग से जाने के कुछ लम्‍हें

जीवन की सौगात बची है

आओ दिल का.................

घुटी व्‍यथा जो तुझमें,मुझमें

उसकी कुछ आवाज बची है

भींगे मन के कुछ पन्‍नों पर

यादों की झनकार बची है

sundar shabd 

Comment by नादिर ख़ान on January 25, 2013 at 10:42am

बहुत सुंदर बोल उम्दा गीत ...

Comment by Vinita Shukla on January 25, 2013 at 10:40am

सुन्दर भावपूर्ण आह्वान. बधाई.

Comment by shalini kaushik on January 25, 2013 at 1:06am

 

सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति

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