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               रक्तधार

विगत संबंधों से स्पंदन करती   

पुरानी रक्तधार

सूखी नदी-सी सूख चुकी है,

पर मात्र स्मृति किसी एक संबंध की

जैसे नदी के सूखे तल को

आ कर ज्वार-भाटा-सी भिगो देती है।

विसंगत प्रसंगों में समन्वय ढूँढते

कितने वियोगाँत दृश्य

दुहरा जाते हैं विप्लव-से झट से

                     मेरी आहत आँखों में ...

              

आज मैंने डाल पर देखा

कोई उदास आँखों वाला

ठिठुरता रक्ताक्त पक्षी,

आशंकित,

झिझक रहा था लौट आने को डाल पर,

और फिर जा बैठा वह उसी डाल पर

क्षत-विक्षत हुआ था

               जिस डाल पर वह बार-बार।

... और मुझको लगा

           उस पक्षी का नाम ‘विजय’ था।

                           ---------

                                                    -- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by vijay nikore on February 20, 2013 at 9:16pm

आदरणीया विनीता जी:

 

मेरी कविता की ऐसी सराहना से

मनोबल बढ़ाने के लिए आपका आभारी हूँ।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on February 20, 2013 at 9:12pm

आदरणीया मंजरी जी:

 

सराहना के लिए आपका अतिशय धन्यवाद।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on February 20, 2013 at 9:11pm

आदरणीया आरती जी:

 

आपके उत्साहवर्धक शब्दों को नमन।

मेरा हार्दिक धन्यवाद।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by Dr.Ajay Khare on February 20, 2013 at 3:08pm

अत्यंत संवेदनशील एवं मार्मिक रचना. बहुत बहुत बधाई. ADARNIY VIJAY JI BAHUT KHUB 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 20, 2013 at 1:39pm

आदरणीय निकोरे जी, मुझे यह रचना पढ़ यह समझ नहीं आ रही की मेरे स्मृति पटल को 

आपने कैसे पढ़ लिया । यह तो साफ़ साफ़ मेरे अतर्मन के उदगार ही लग रहे है । खैर जो 
भी है आपके मन के ये भाव बेहद पसंद भी आये और संवेदना भी उभरी । हार्दिक आभार 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 20, 2013 at 12:20pm

अंतर्मन की बेबसी और पीड़ा जैसे बह निकली है शब्दों में और अपने प्रवाह के साथ बहाए ले जा रही है पाठक को अंत तक जहां वो भी इन शब्दों के दर्पण में अपने ही बिम्ब को अनुभव कर रहा है.

इस पीड़ाजन्य  मर्मस्पर्शी अंतर्भाव सम्प्रेषण के लिए बधाई नहीं कहूंगी.. 

सादर.

Comment by Vinita Shukla on February 19, 2013 at 10:28pm

अत्यंत संवेदनशील एवं मार्मिक रचना. बहुत बहुत बधाई.

Comment by vijay nikore on February 19, 2013 at 8:52pm

आदरणीय संदीप जी:

आपका हार्दिक आभार।

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on February 19, 2013 at 8:42pm

आदरणीय अरुण जी:

 

यह कविता मेरी नहीं है, यह जिस किसी की भावनाओं को छू जाए,

उसी की है ... अत: आपकी अपनी है ... पर इसका दर्द आपको न

देना चाहूँगा। आप प्रसन्न रहें।

 

विजय निकोर

 

Comment by Aarti Sharma on February 19, 2013 at 8:42pm

प्रणाम विजय भाई..आपकी रचना पड़कर निशब्द हु...बेहतरीन पंक्तियों से संजोया है आपने कविता को..बधाई स्वीकारें ..

कृपया ध्यान दे...

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